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Friday, November 29, 2019

सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 (22) ( Civil rights protection act 1955)


पहले यह अधिनियम अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955 कहलाता था, इसे राष्ट्रपति ने 8 मई 1955 को अनुमति प्रदान की तथा यह 1 जून 1955 से लागू हुआ था, इसका प्रथम संस्करण 1 नवंबर 1970 को 2 भाषाओं में आया था |

19 नवंबर 1976 से इसका नाम सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 हो गया 


इसका द्वितीय संस्करण 1 जून 19 77 को( सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1977) आया था


इस अधिनियम में जैन, बौद्ध, सिक्ख, ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज को हिंदू माना जाएगा


Civil rights protection act 1955(22) in hindi PDF

इस अधिनियम में 16 धाराएं हैं जिनका विवरण निम्नानुसार है -


धारा 1-  इस धारा के अंतर्गत इस अधिनियम का नाम सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम तथा संपूर्ण भारत में इसके लागू होने के बारे में बताया गया है

धारा 2 -  इसके अंतर्गत  सिविल अधिकार की परिभाषा ( सिविल अधिकार अधिकार है जो अस्पृश्यता निवारण के लिए संविधान के अनुच्छेद 17 में दिए गए हैं)  इसके अंतर्गत आने वाले स्थान( होटल, तंबू, जान, भोजनालय, धर्मशाला, मनोरंजन स्थल, सार्वजनिक परिवहन संसाधन आदि) एवं अनुसूचित जाति और जनजाति की परिभाषा दी गई है

धारा 3-  इसके अंतर्गत धार्मिक  निर्योग्यता के लिए दंड का प्रावधान बताया गया है -
अगर कोई व्यक्ति अस्पृश्यता के आधार पर किसी व्यक्ति को पूजा स्थान से एक धर्म का होते हुए भी जाने से रोकता है या किसी पूजा स्थल पर प्रार्थना करने से रोकता है या किसी पवित्र तालाब जल स्रोत में  स्नान करने से रोकता है तो रोकने वाले व्यक्ति को कम से कम 1 माह और अधिकतम 6 माह की सजा और ₹100 से ₹500 तक के जुर्माने की सजा होगी

धारा 4- सामाजिक   निर्योग्यता के लिए दंड का प्रावधान इस धारा के अंतर्गत किया गया है
 यदि कोई व्यक्ति
* किसी दुकान,  भोजनालय, धर्मशाला आदि का उपयोग करने से किसी व्यक्ति को रोकता है
* किसी व्यक्ति को  व्यापार रोजगार करने से रोकता है
* सार्वजनिक परिवहन के संसाधन का उपयोग करने से रोकता है
* किसी क्षेत्र में निवास, गृह निर्माण या भूमि अर्जन से रोकता है
*  किसी रीति रिवाज,  आभूषण आदि का प्रयोग करने से रोकता है
* किसी जल स्रोत, शमशान या कब्रिस्तान, शौचालय, सड़क  आदि का उपयोग करने से रोकता है
* किसी ट्रस्ट या सार्वजनिक उपयोग की वस्तुओं का उपयोग करने से  रोकता है
 तो उसे अस्पृश्यता का अपराधी माना जा कर  1 माह से 6 माह तक की सजा और ₹100 से ₹500 तक का जुर्माना किया जा सकता है

धारा 5- यदि कोई व्यक्ति किसी को अस्पताल, स्कूल, कॉलेज मैं प्रवेश करने से रोकता है  या प्रवेश लेने के बाद भेदभाव करता है तो उस व्यक्ति को 1 माह से 6 माह का कारावास तथा ₹100 से ₹500 तक का जुर्माना किया जा सकता है


Civil rights protection act 1955(22) in hindi PDF

धारा 6 यदि कोई व्यक्ति किसी को अस्पृश्यता के आधार पर माल बेचने या कोई सेवा देने से रोक देता है या मना करता है तो उस व्यक्ति को 1 माह से 6 माह तक का कारावास और ₹100 से ₹500 तक का अर्थदंड किया जा सकता है

धारा 7 -यदि कोई व्यक्ति शब्द से, लिखित में, चित्रों के द्वारा या अपनी मुद्रा से अस्पृश्यता व्यवहार करता है या किसी व्यक्ति को अनुच्छेद 17 के अधिकारों से रोकता है या व्यक्ति द्वारा अनुच्छेद 17 के अधिकारों का प्रयोग करने कारण उसे उसका बहिष्कार करता है या उसे घायल करने का प्रयास करता है तो ऐसा करने वाले व्यक्ति को 1 माह से 6 माह का कारावास और ₹100 से ₹500 का दंड किया जाएगा

** यदि कोई व्यक्ति अनुच्छेद 17 के अधिकारों का प्रयोग करता है और कोई दूसरा व्यक्ति उससे बदला लेने के लिए अपराध करता है तो ऐसे अपराधी को कम से कम 2 वर्ष की सजा और जुर्माना  किया जा सकता है 

धारा 7 अ- यदि कोई व्यक्ति अस्पृश्यता के आधार पर किसी को झाड़ू लगाने, साफ सफाई करने, जानवरों का सब उठाने, जानवरों की खाल खींचने, मेला उठाने या इसी प्रकार के अन्य कार्य करने के लिए बाध्य करेगा तो उस व्यक्ति को 3 माह से 6 माह तक का कारावास और ₹100 से ₹500 अर्थदंड किया जाएगा

धारा 8- सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम में दोषी पाया गया व्यक्ति यदि व्यापार या व्रत याद की अनुज्ञप्ति रखता है तो उसका लाइसेंस निलंबित हो सकता है या रद्द हो सकता है

धारा 9-  शासकीय अनुदान  प्राप्त न्यास या संस्था का प्रबंधक  या कोई सदस्य सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत दोषी पाया जाता है तो सरकार उसके संपूर्ण अनुदान को उसके भाग को निलंबित  कर सकती है यहां वापस ले सकती है

धारा 10- इस अधिनियम में यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध का दुश प्रेरण करता है तो उसे भी अपराध का दोषी माना जाएगा

धारा 10 अ - राज्य शासन को यह लगता है कि किसी क्षेत्र की व्यक्ति  अस्पृश्यता जनित अपराध, उसके दोस्त प्रेरण, यह अपराध में सहायक है तू राज्य सरकार उस क्षेत्र की व्यक्तियों पर सामूहिक जुर्माना लगा सकती है सरकार उस जुर्माने का समय और विभाजन आदि का निर्णय लेती है इसके लिए राज्य सरकार को उस क्षेत्र में मुनादी करवाकर इसकी सूचना देनी होगी और उस क्षेत्र की व्यक्ति चाहे तो सक्षम अधिकारी के समक्ष जुर्माने की माफी के लिए आवेदन लगा सकते हैं


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धारा 11 - इस अधिनियम के अंतर्गतयदि कोई व्यक्ति अपराध की प्रवृत्ति करता है तो
* दूसरे अपराध पर उसे 6 माह से 12 माह तक का कारावास एवं ₹200 से ₹500 तक का अर्थ दंड दे होगा
* तीसरे अपराध पर 1 वर्ष से 2 वर्ष का कारावास एवं ₹500 से ₹1000 तक का अर्थदंड होगा
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remaining jald hi upload hoga
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