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Saturday, October 13, 2018

परामर्श

साथियो मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा  के बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र के अनिवार्य पाठ्यक्रम में एक महत्वपूर्ण बिंदु है निर्देशन एवं परामर्श  आज इसके लिए परामर्श के नोट्स पीडीऍफ़ में उपलब्ध कराये जा रहे हैं शीघ्र ही  अन्य विषयों के नोट्स उपलब्ध कराये जायेंगे , इन्हें सबसे पहले पाने के लिए ब्लॉग को सब्सक्राइब करें -

निर्देशन एक व्यापक प्रक्रिया है परन्तु परामर्श इसका एक महत्वपूर्ण अंग है। परामर्श के बिना निर्देशन का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो सकता। परामर्श शब्द दो व्यक्तियों से सम्बन्ध रखता है- परामर्शदाता तथा परामर्श प्रार्थी या परामर्श चाहने वाला।

परामर्श चाहने वाले की कुछ समस्याएं होती हैं, जिनका समाधान वह अकेले नहीं कर सकता। इन समस्याओं के समाधान के लिए उसे किसी दूसरे व्यक्ति के सुझाव की आवश्यकता होती है और यह सुझाव ही परामर्श कहलाते हैं, जो कि परामर्शदाता द्वारा दिये जाते हैं।

अन्य शब्दों में परामर्शदाता परामर्श चाहने वाले व्यक्ति की समस्या या कठिनाई को समझने का प्रयास करता है तथा उससे विचारों का अदान-प्रदान करके उसकी समस्या का समाधान करने में सहयता प्रदान करता है। इस प्रकार की सहायता परामर्श कहलाती है।

परिभाषाऐं - 

बरनार्ड तथा फूलमर के अनुसार- ‘‘बुनियादी तौर पर परामर्श के अन्तर्गत व्यक्ति को समझना और उसके साथ कार्य करना होता है जिससे उसकी आवश्यकताओं, अभिप्रेरणाओं और क्षमताओं की जानकारी हो और फिर उसे उनके महत्व को जानने में सहायता दी जाए।’’

डॉ0 सीता राम जायसवाल के अनुसार- ‘‘निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि परामर्श का मूल तत्व दो व्यक्तियों के बीच ऐसा सम्पर्क है, जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को स्वयं को समझने में सहायता देता है।’’

मार्यस के अनुसार- ‘‘परामर्श का तात्पर्य दो व्यक्तिों के सम्पर्क से है, जिसमें एक को किसी प्रकार की दूसरे व्यक्ति द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।’’

राबिन्सन के अनुसार- ‘‘परामर्श शब्द दो व्यक्तियों की सम्पर्क की उन सभी स्थितियों का समावेश करता है, जिनमें एक व्यक्ति को उसके स्वयं के एवं वातावरण के मध्य प्रभावशाली समायोजन प्राप्त करने में सहायता की जाती है।’’

उद्देश्य -
परामर्श के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

रूथ स्टैªग के अनुसार-‘‘परामर्श का उद्देश्य आत्मपरिचय या आत्मबोध है।’’

डन्समूर के अनुसार-‘‘परामर्श का उद्देश्य छात्र को अपनी कठिनाइयों को हल करने की योजना
बनाने में सहायता देना है।’’

रॉबर्टस के अनुसार-‘‘ परामर्श का उद्देश्य परामर्श लेने वाले को अपनी शैक्षिक, व्यावसायिक
और वैयक्तिक समस्यों को समझने में सहायता देना है।’’

जे0पी0अग्रवाल के शब्दों में- ‘‘ परामर्श का उद्देश्य है छात्र को अपनी विशिष्ट योग्यताओं और
   उचित दृष्टिकोणों का विकास करने में सहायता देना।’’

अन्य उद्वेश्य -
  छात्र को अपनी योग्यताओं रूचियों तथा कुशलताओं को समझकर अपनी समस्याओं का समाधान करना।

छात्रों को अपनी समस्याओं का समाधान करने मंे इस प्रकार सहायता प्रदान करना कि उसमें बिना किसी की सहायता लिए समस्याओं का समाधान करने की योग्यता का विकास हो जाए।



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परामर्श प्रकार -

1. नैदानिक परामर्श- नैदानिक परामर्श का सम्बन्ध व्यक्ति के सामान्य कार्य सम्बन्धी असमायोजनों से
है। इसमें साधारण कार्य सम्बन्धी असमायोजन का निदान एवं उपचार किया जाता है।

2. मनोवैज्ञानिक परामर्श- परामर्शदाता विभिन्न मनोवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग कर परामर्श प्रार्थी की
कठिनाइयों को समझने का प्रयास करता है और उसकी मानसिक समस्याओं का समाधान करने
में सहायता करता है।

3. शैक्षिक परामर्श- शैक्षिक परामर्श छात्र को अपनी शिक्षा एवं अध्ययन में सफलता प्राप्त करने तथा
पाठ्यक्रमों एवं विषयों का उचित चुनाव करने के लिए दिया जाता है।

4. सामाजिक परामर्श- इसका उद्देश्य परामर्श प्रार्थी को सामाजिक कुशलताओं का विकास करने में
सहायता देना है।

5. व्यावसायिक परामर्श- व्यावसायिक परामर्श व्यक्ति की उन समस्याओं का समाधान करने में सहायता
करता है, जो किसी व्यवसाय के चुनाव या उसके लिए तैयारी करते समय उसके सम्मुख आती हैं।

परामर्श की विधियाँ -
    छात्रों को परामर्श प्रदान करने के लिए दो विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं-
1. व्यक्तिगत परामर्श 2. समूह परामर्श

परामर्श की आवश्यकता एवं क्षेत्र -
                        छात्रों को अपना अधिकतम विकास करने में सहायता देने के लिए परामर्श आवश्यक है-
A छात्रों की वर्तमान समस्याओं को हल करने में सहायता देने के लिए।
B विशेष योग्यताओं तथा उचित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित एवं विकसित करने के लिए।
C शैक्षिक तथा व्यावसयिक चयन की योजना बनाने में छात्र की सहायता करने के लिए।
D छात्रों को अपने उत्तरदायित्व को समझने में सहायता देना।
E छात्रों को सामाजिक और संवेगात्मक सामंजस्य स्थापित करने में सहायता करने के लिए।

प्रारम्भिक शिक्षा में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका - 
                                                राष्ट्रीय शिक्षा नीति, कार्य योजना 1986 के अनुसार अनौपचारिक शिक्षा, शिशु देखभाल, प्रौढ़ शिक्षा, विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा सहित प्रारम्भिक शिक्षा जैसे कार्यक्रमों के सफल कार्यान्वयन के लिए सबसे निचले स्तरों पर शिक्षा के कार्यक्रमों में जनता की सहभागिता तथा सहयोग अपेक्षित है। इसी प्रकार स्वैच्छिक संगठनों तथा सक्रिय सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का सहयोग भी व्यापक रूप से अपेक्षित है। सरकार और स्वैच्छिक एजेंसियों के बीच वास्तविक भागीदारी के सम्बन्ध सुनिश्चित करने की आवश्यकता को समझते हुए सरकार उनका व्यापक सहयोग प्राप्त करने हेतु ठोस कदम उठायेगी। इसके साथ ही समय-समय पर उनसे आवश्यकतानुसार परामर्श भी प्राप्त किया जायेगा। कार्यक्रम के क्रियान्वयन में सहभागिता करने के लिए उन्हें अपेक्षित सुविधाएँ दी जायेंगी। 1990 से 1993 तक 25 राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में गैर सरकारी संगठनों द्वारा 9485 से अधिक अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र संचालित किये जा रहे थे। गैर सरकारी संगठन प्रारम्भिक शिक्षा कार्यक्रमों के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। निजी स्कूलों ने अपने प्रयासों से विद्यार्थियों की एक अच्छी संख्या को आकृष्ट कर रखा है। सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों के सफल संचालन से साक्षरता की स्थिति में पर्याप्त सुधार हुआ है। आज आवश्यकता इस बात की भी है कि हमें स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर जागरुक होना होगा एवं अपने कर्त्तव्यों का ईमानदारी पूर्वक निर्वाह करना होगा। तभी शिक्षा का समुचित रूप में विकास हो सकेगा एवं सरकार के प्रयासों का वास्तविक प्रतिरूप दिखाई देगा। सरकार ने शिक्षा के विकास के लिए जो मानक तय किये हैं हमें उन पर खरा उतरना होगा तभी शिक्षा समुचित रूप में जन-जन तक पहुँच पायेगी। प्रबुद्ध जनों ने देश के विकास के लिए जो स्वप्न देखें हैं वे तभी साकार हो पायेंगे।

बाल-अधिगम में निर्देशन एवं परामर्श का महत्व -
                                            बच्चे क्या पढ़ें अथवा बालकों के लिए उनकी क्षमता, प्रवृत्ति, संसाधन को दृष्टिगत रखते हुए क्या अधिगम करें- यह सुझाना बाल अधिगम कहलाता है। किसी समस्या या क्रिया का अधिगम तब किया जा सकता है जब उस समस्या के सम्बन्ध में जागरूक हो। किसी समस्या के अधिगम के लिए यह आवश्यक है कि अधिगमकर्ता के स्नायु इतने विकसित और परिपक्व हों कि वह समस्या का अधिगम कर सके। बाल शिक्षुओं के स्नायु और मस्तिष्क इतने परिपक्व नहीं होते हैं कि किसी समस्या का सरल विधि द्वारा अधिगम कर सकें। बाल शिशुओं में जागरूकता नहीं के बराबर पायी जाती है। कुछ अध्ययनों के द्वारा यह स्पष्ट हुआ है कि यद्यपि बाल अधिगम बहुत कठिन है, परन्तु फिर भी सहज एवं सरल परिस्थितियों में बाल शिशुओं को अधिगम कराया जा सकता है। शिक्षा के उपक्रम का उद्देश्य बच्चों को अधिगम कराना (सिखाना) है। सिखाने की इस प्रक्रिया को शिक्षण, अनुदेशन, निदेशन, परामर्श आदि क्रिया-कलापों से पूरा किया जाता है। बालकों को पर्याप्त व शीघ्र अधिगम करने के लिए बच्चों को दिया जाने वाला अनुदेशन निदेशन व परामर्श कहलाता है।

निर्देशन एवं परामर्श का महत्व -
                      शैक्षिक अधिगम के महत्व को बताते हुए विभिन्न विद्वानों ने अपना मत अग्र प्रकार प्रकट किया है-

ब्रेबर के अनुसार- ‘‘शैक्षिक निदेशन चेतनामिभूत प्रयत्न है, जिनके द्वारा व्यक्ति के बौद्धिक विकास में सहायता प्रदान की जाती है। कोई भी चीज जो शिक्षण या सीखने के साथ की जाती है। शैक्षिक निदेशन के अन्तर्गत आती है।’’

रूथ स्टेग के अनुसार- ‘‘व्यक्ति को शैक्षिक निदेशन प्रदान करने का उद्देश्य छात्र को उपयोगी कार्यक्रम को चुनने तथा उसमें प्रगति करने में सहायता देना है।’’

बाल अधिगम में परामर्श- निर्देशन का क्षेत्र तथा आवश्यकता -
                                                         बालक-बालिकाओं को उचित मार्गदर्शन, परामर्श करना ही महत्वपूर्ण आवश्यकता है। शैक्षिक निर्देशन एवं परामर्श निम्नलिखित दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं
A अधिगम हेतु पाठ्य विषयों का चयन में
B भावी शिक्षा कार्यक्रम के चयन में।
C विद्यालय में समत्योजन करने हेतु।
D अधिगम प्रक्रिया में वांछित प्रगति करने हेतु।
E रोजगार के अवसर हेतु शिक्षण करने हेतु।
F अपव्यय व अवरोधन को रोकने हेतु।
G अधिगम में निर्मित ‘सीखने का पठार’ के न बनने देने तथा यदि बन गया है तो उसे समाप्त करने हेतु परामर्श तथा निदेशन किया जाता है।
H अधिगम को स्थाई व व्यावहारिक स्वरूप (बोध स्तर) प्रदान करने हेतु।
I अधिगम करने की विधियाँ अपनाने हेतु परामर्श दिया जाता है।
J श्ण्अधिगम में मन न लगने पर परामर्श व निदेशन की व्यवस्था की जाती है।

बाल अधिगम में परामर्श के पात्र -
                            बाल अधिगम में कई तत्व काम करते हैं जैसे-बालक स्वयं, शिक्षक, पाठ्यक्रम वातावरण व अभिभावक या पारिवारिक आर्थिक स्थिति। बाल अधिगम को श्रेष्ठ, स्थायी बनाने के लिए इसमें निम्नलिखित को भी परामर्श दिया जाता है-

1. शिक्षकों को 2. अभिभावकों को  3. बच्चों को

बाल अधिगम को स्थाई बनाने हेतु उपर्युक्त लोगों को भी परामर्श दिया जाता है ताकि वे बाल अधिगम में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन कर सकें। निदेशन व परामर्श बाल अधिगम को स्थायी, सुगम बनाता है।

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