अभिप्रेरणा (Motivation)
अभिप्रेरणा (Motivation) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द motum से हुई
है जिसका अर्थ है गति. मनोवैज्ञानिक भाषा में अभिप्रेरणा से अभिप्राय केवल आतंरिक
उत्तेजनाओं से होता है दूसरे शब्दों में प्रेरणा वह अद्रश्य आतंरिक शक्ति है जो
व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है इसका अनुमान व्यक्ति के व्यव्हार को
देखकर लगाया जा सकता है
अभिप्रेरणा के प्रकार – अभिप्रेरणा दो
प्रकार की होती है –
1. सकारात्मक –
इसमें बालक स्वप्रेरित होकर अपनी इच्छा से कार्य करके सुख और संतोष प्राप्त करता
है इसे आतंरिक प्रेरणा भी कहते हैं.
2. नकारात्मक – इसमे
बालक अपनी इच्छा से कार्य न करके किसी दूसरे की इच्छा या दवाब के कारण करता है
जिससे उसे बांछित लक्ष्य की प्राप्ति होती है शिक्षक प्रसंशा ,निंदा, पुरूस्कार, दण्ड,
खेल, परिणाम प्रदर्शन , सामूहिक कार्य, रुचि , आवश्यकता महसूस
करना , प्रतिद्वंद्विता आदि के द्वारा बालक को नकारात्मक अभिप्रेरणा प्रदान करता
है .
अभिप्रेरणा के स्रोत –
1. आवश्यकता
2. चालक
3. उद्दीपन
4. प्रेरक –
प्रेरक के प्रकार
–
(A)
जन्मजात प्रेरक –
भूख , काम, निंद्रा , प्यास
(B)
अर्जित प्रेरक –
रुचि , आदत , सामुदायिकता
(C)
मनोवैज्ञानिक
प्रेरक – आनद , क्रोध , दुःख , प्रेम ,घ्रणा
(D)
सामाजिक प्रेरक –
जिज्ञासा ,रचनात्मकता ,आत्मसुरक्षा , आत्मप्रदर्शन
(E)
स्वाभाविक प्रेरक
– खेल ,अनुकरण , सुझाव ,प्रतिष्ठा ,सुखप्राप्ति
(F) कृत्रिम प्रेरक –
दण्ड ,पुरूस्कार, प्रसंशा, बुराई, सहयोग, व्यक्तिगत एवं सामूहिक कार्य
अभिप्रेरणा के सिद्धांत –
1. अभिप्रेरणा की
मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत – मैक्डूगल (1908)
2. अभिप्रेरणा का
मांग का सिद्धांत – मैस्लो (1924)
3. अभिप्रेरणा का
प्रणोद न्यूनता का सिद्धांत – क्लार्क लिओनार्ड हल (1943)
4.अभिप्रेरणा का
लक्ष्य आधारित सिद्धांत – संज्ञानात्मक विचारधारा के मनोवैज्ञानिक
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