सामान्य रूप से जो बच्चे औसत शारीरिक एवं मानसिक स्तर IQ (90-110) वाले होते हैं, उन्हें हम सामान्य बच्चे के रूप में जानते हैं। विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे सामान्य बच्चों से विशिष्ट होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि सामान्य बच्चे सामान्य शारीरिक एवं मानसिक श्रम वाले कार्यों को करने में किसी बाधा का अनुभव नहीं करते हैं। कक्षा में अधिकांश बच्चों की भाँति वे शैक्षिक उपलब्धि में भी औसत होते हैं। इनके सीखने की गति भी औसत होती है। इसके विपरीत विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे इस प्रकार के कार्यों को करने में अपने को असहज एवं असमर्थ पाते हैं।
विशिष्टता के क्षेत्र सार्वभौमिक हैं। महान कवि सूरदास जन्मान्ध थे। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटीन का भाषा विकास काफी देर से हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट स्वयं पोलियोग्रस्त थे। यह विशिष्टता, वंशानुगत, कभी-कभी वातावरणजन्य तथा कभी-कभी दोनों का संयोजन होती है। यह सभी उदाहरण सिद्ध करते हैं कि विभिन्न नियोग्यताओं की पूर्ति सम्भव है तथा कोई भी अक्षम बच्चे को उचित शिक्षण एवं प्रशिक्षण के द्वारा सामान्य बच्चों की तरह स्वयं के लिए तथा राष्ट्र एवं समाज के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। आज प्रायः विश्व के सभी देशों में विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के प्रति दृष्टिकोण में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है। विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के सम्बन्ध में विभिन्न मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाशास्त्रियों नें अपने-अपने ढंग से व्याख्या की है, यथा-
1. हीबर्ड (1996) के अनुसार,- ‘‘विशिष्ट बच्चों की श्रेणी में वे बच्चे आते हैं जिन्हें सीखने में कठिनाई का अनुभव होता है या जिनमें मानसिक या शैक्षिक निष्पादन या सृजन अत्यन्त उच्चकोटि का होता है या जिनको व्यावहारिक, सांवेगिक एवं सामाजिक समस्याएँ घेर लेती हैं या वे विभिन्न शारीरिक अपंगताओं या निर्बलताओं से पीड़ित रहते हैं, जिनके कारण ही उनके लिए अलग से विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती है।‘‘
2. क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, ‘‘विशिष्ट प्रकार या विशिष्ट पद किसी गुण या उन गुणों से युक्त व्यक्ति पर लागू होता है जिसके कारण वह व्यक्ति, साथियों का ध्यान अपनी ओर विशिष्ट रूप से आकर्षित करता है तथा इससे उसके व्यवहार की अनुक्रिया भी प्रभावित होती है।‘‘
3. क्रिक (1962) के अनुसार, ‘‘विशिष्ट बच्चे मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक गुणों में सामान्य बच्चों से भिन्न होते हैं। उनका भिन्नता कुछ ऐसी सीमा तक होता है कि उसे स्कूल के सामान्य कार्यों में विशिष्ट शिक्षा सेवाओं में परिवर्तन की आवश्यकता होती है। ऐसे बच्चों के लिए कुछ अतिरिक्त अनुदेशन भी चाहिए, ऐसी दशा में उनका सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक विकास हो सकता है।“
उपर्युक्त परिभाषाओ के आधार पर हम कह सकते हैं कि, ‘‘विशिष्ट बच्चे वह बच्चे है जो कि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, शैक्षिक, सांवेगिक एवं व्यावहारिक विशेषताओं के कारण किसी सामान्य या औसत बच्चे से उस सीमा तक स्पष्ट रूप से विचलित या अलग होते है जहाँ कि उन्हें अपनी योग्यताओं, क्षमताओं एवं शक्तियों को समुचित रूप से विकसित करने के लिए परम्परागत शिक्षण-विधियों में परिमार्जन या विशिष्ट प्रकार के कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है, उन्हें विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे कहा जाता है।
इस श्रेणी में शारीरिक रूप से अक्षम, प्रतिभाशाली, सृजनात्मक, मन्दबुद्धि, शैक्षिक रूप से श्रेष्ठ एवं पिछड़े, बाल-अपराधी, असमायोजित, समस्याग्रस्त, सांवेगिक, अस्थिरतायुक्त आदि प्रकार के बच्चे सम्मिलित हैं।
हेवेट तथा फोरनेस के अनुसार, ‘विशिष्ट‘ ऐसा व्यक्ति है जिसकी शारीरिक, मानसिक, बुद्धि, इन्द्रियाँ, मांसपेशियों की क्षमताएँ अनोखी हो अर्थात सामान्यतया ऐसे गुण दुर्लभ हों, ऐसी अनोखी दुर्लभ क्षमताएँ उसकी प्रकृति तथा कार्यों के स्तर में भी हो सकती है। इस प्रकार से विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों से सम्बन्धित सभी प्रश्नों के समाधान के लिए मनौवैज्ञानिक, चिकित्साशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद, गृहविज्ञान वेत्ता आदि अपने-अपने दृष्टिकोणो के अनुसार अध्ययनरत हैं। वैयक्तिक भिन्नताओं के ज्ञान के साथ-साथ इन प्रश्नों का महत्व और अधिक हो गया है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि सभी व्यक्ति प्रायः शारीरिक, मानसिक, शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से किसी न किसी रूप में परस्पर भिन्न होते हैं, किन्तु कभी-कभी भिन्नताएँ इस सीमा तक पायी जाती हैं कि बच्चों को विशिष्ट वर्गों में रखकर शिक्षा देना आवश्यक हो जाता है। भारत जैसे प्रजातान्त्रिक प्रणाली वाले राष्ट्र में सरकार, समाज तथा शिक्षा संस्थाओं का यह कर्त्यव्य है कि वे इन विशिष्ट बच्चों की पहचान कर उनकी आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा एवं निर्देशन प्रदान करें।
सामान्य बच्चे 90-110 IQ वाले बच्चे होते हैं। ये शारीरिक एवं मानसिक रूप से भी सामान्य होते हैं। जो बच्चे सामान्य बच्चों से अलग होते हैं वे विशिष्ट बच्चे कहलाते हैं। विशिष्ट बच्चे के लिए विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती है। विशिष्ट बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा को समझने में सामान्य शिक्षकों को कठिनाइयाँ होती हैं।
हमसे आप विभिन्न विधियों से जुड़ सकते है ------
विशिष्ट बच्चों की पहचान -
विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान या लक्षण -
विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे सामान्य बच्चों से विशिष्ट लक्षणों वाले होते हैं। सामान्य बच्चों में पाये जाने वाली निम्नलिखित विशिष्ट प्रवृत्तियाँ पायी जाती हैं- यह अन्तर्मुखी, निराशावादी, सांवेगिक, स्थिर, शर्मीले, निष्क्रिय, आत्मकेन्द्रित, चिन्ताग्रस्त, निर्भर प्रवृत्ति, कभी-कभी उग्र, एकाकी भावना वाले होते हैं।
इनकी पहचान हम निम्नलिखित तरीके से कर सकते हैं -
1. निरीक्षण द्वारा-अध्यापक अपने कक्षा-कक्ष में शिक्षण के दौरान उपरोक्त लक्षणों के आधार पर विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों को चिन्हित कर सकता है और उन्हें आवश्यकतानुसार शिक्षा प्रक्रिया से लाभान्वित कर सकता है।
2. चिकित्सकीय परीक्षण द्वारा- कभी-कभी ऐसा होता है कि विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान न होने के कारण विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के शरीर एवं मस्तिष्क का चिकित्सकीय परीक्षण कर उनकी पहचान की जा सकती हैं।
3. मानसिक परीक्षण द्वारा- छात्रों का मानसिक परीक्षण कर उनकी विशिष्टता का पता लगाया जा सकता है। यह थिमेंटिक अपरसेप्सन टेस्ट (TAT), हरमन रोशा का स्याही धब्बा परीक्षण आदि जैसे परीक्षणों का प्रयोग कर पता लगाया जा सकता है।
4. शैक्षिक परिणामों के द्वारा-विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे के कक्षा के परीक्षा में प्राप्त परिणामों का अवलोकन एवं विश्लेषण के द्वारा इनकी विशिष्टता का पता लगाया जा सकता है।
5. व्यवहार के अवलोकन के द्वारा- विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों द्वारा किये गये व्यवहारों के मनोवैज्ञानिक परीक्षण एवं विश्लेषण से उनकी विशिष्टताओं का पता लगाया जा सकता है।
6. समाजमिति एवं साक्षात्कार के द्वारा- विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान के लिए समाजमिति एवं उनका प्रत्यक्ष विधि से साक्षात्कार कर उनकी विशिष्टताओं का पता लगाया जा सकता है। विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के प्रकार सामान्य बच्चों से भिन्नता रखने वाले विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे आपस में भी अनेक असमानताएँ रखते हैं। कुछ बच्चे सीखने की निर्योग्यताओं के कारण, कुछ बौद्धिक क्षमताओं के कारण तथा कुछ असामान्य शैक्षिक उपलब्धि के कारण विशिष्ट आवश्यकता वाले होते हैं। विशिष्ट बच्चों के लक्षण, गुण, स्वरूप सामान्य बच्चों से विशिष्ट होते हैं। यह उन बच्चों पर लागू होता है जो सामान्य बच्चों से अलग हो, उनकी स्मरण शक्ति अलग हो। एक विशिष्ट बच्चे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक आधार पर सामान्य बच्चे से बिल्कुल अलग प्रकार का होता है। विशिष्ट बच्चे सामान्य कक्षा-कक्ष एवं सामान्य शिक्षा कार्यक्रमों से पूर्णतया लाभान्वित नहीं हो पाता। विशिष्ट बच्चे की अधिकतम सामर्थ्य विकास के लिए इसे स्कूल की कार्यप्रणाली तथा उसके साथ किये जाने वाले व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता होती है। विशिष्ट बच्चे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक तथा शैक्षिक उपलब्धियों जैसी सभी धाराओं में सम्मिलित होता है।
इसके विस्तृत नोट्स पीडीऍफ़ में डाउनलोड़करने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करें
ctet/mptet परीक्षा की तैयारी हेतु अन्य महत्वपूर्ण नोट्स :-
१. निर्देशन
२.परामर्श
३. बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र ( मॉडल पेपर -1)
४.बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र ( मॉडल पेपर -2)
ctet/mptet परीक्षा की तैयारी हेतु अन्य महत्वपूर्ण नोट्स :-
१. निर्देशन
२.परामर्श
३. बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र ( मॉडल पेपर -1)
४.बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र ( मॉडल पेपर -2)
२.परामर्श
३. बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र ( मॉडल पेपर -1)
४.बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र ( मॉडल पेपर -2)
इसी प्रकार के अन्य नोट्स एवं मॉडल पेपर को सबसे पहले पाने के लिए ब्लॉग को सब्सक्राइब करें साथ ही कमेंट करके बताएं आपको ये नोट्स कैसे लगे, आप और किन विषयों पर नोट्स चाहते हैं
इसी प्रकार के अन्य नोट्स एवं मॉडल पेपर को सबसे पहले पाने के लिए ब्लॉग को सब्सक्राइब करें साथ ही कमेंट करके बताएं आपको ये नोट्स कैसे लगे, आप और किन विषयों पर नोट्स चाहते हैं
"अगर आपको यह POST पसंद आयी हो तो इसे SHARE जरूर करें ""
Bht accha notes hai sir
ReplyDeleteVery helpful
ReplyDeleteVerry helpful,,,but, question that is👉Discuss the concessions and benefits for CwSn in detail(children with special needs)???sir pls is topic pe kuch jankari ho to post kriye pls....
ReplyDeleteआप सेन शिक्षार्थियों की विविध आवश्यकताओं की पहचान कैसे करेंगे? एसईएन बच्चों के लिए शैक्षिक रियायतों और सुविधाओं पर चर्चा करें।
ReplyDelete