MPTET/CTET/RTET/UPTET/HTET एवं अन्य राज्यों द्वारा आयोजित प्राथमिक शिक्षक / PRT चयन परीक्षा के पाठ्यक्रम पर आधारित गणित (MATHEMATICS) विषय की तैयारी के लिए यहाँ पर बिन्दुवार जानकारी प्रस्तुत की जा रही है
शिक्षण विधि :- जिस विधि से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है
गणित की शिक्षण विधियों
के प्रकार
Maths pedagogy(maths teaching methods)
Maths pedagogy(maths teaching methods)
1. आगमन विधि :- इस विधि में प्रत्यक्ष अनुभवों, उदाहरणों तथा प्रयोगों का अध्ययन कर नियम निकाले जाते है तथा ज्ञात
तथ्यों के आधार पर उचित सूझ बुझ से निर्णय लिया जाता है| इसमें शिक्षक छात्रों को अध्ययन
(क). प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर,
(ख). स्थूल से सूक्ष्म की ओर, एवं
(ग). विशिष्ट से सामान्य की ओर करवाते है|
(क). प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर,
(ख). स्थूल से सूक्ष्म की ओर, एवं
(ग). विशिष्ट से सामान्य की ओर करवाते है|
चरण :-
1.
सर्वप्रथम हम एक
उदाहरण प्रस्तुत करते हैं
2.
उस उदाहरण का
निरीक्षण किया जाता है।
3.
उदाहरण के आधार पर
एक नियम बनाया जाता है,
जिसे सामान्यीकरण कहा जाता है।
4. सामान्य नियम का परीक्षण करके उसका सत्यापन किया जाता है।
गुण–
1.
एक वैज्ञानिक विधि
है, जिससे बालकों में नवीन ज्ञान को खोजनें का मौका उपलब्ध कराता है।
2.
ज्ञात से अज्ञात की
ओर, सरल से जटिल की ओर चलकर बालकों से मूर्त उदाहरणों से सामान्य नियम
निकलवाये जाते है, जिससे बालकों में ज्ञिज्ञासा बनी रही रहती है।
3.
स्वयं से अधिगम
करनें के कारण अधिगम अधिक स्थाई रहता है।
4.
बालक स्वयं ही
समस्या का निवारण अपनें विश्लेषण से प्राप्त करते हैं जिससे उनका अधिगम स्थाई रहता
है।
5.
व्यवहारिक और जीवन
में लाभप्रद विधि है।
दोष–
1.
समय अधिक लगता है।
2.
अधिक परिश्रम और
सूझ की आवश्यकता रहती है।
3.
एक तरह से अपूर्ण
विधि है, क्योंकि खोजे गये नियमों या तथ्यों कीजांच के लिए निगमन विधि की
जरूरत होती है।
4.
बालक यदि किसी
अशुद्ध नियम की प्राप्ति कर ले तो उसे सत्य को प्राप्त करनें में अधिक श्रम व समय
की जरूरत होती है।
2. निगमन विधि - इस विधि में पहले से स्थापित नियमों व सूत्रों का प्रयोग करके
अध्यापक छात्रों को समस्या का समाधान करना सीखाते हैं।
1.
नियम से उदाहरण की
ओर
2.
सामान्य से विशिष्ट
की ओर,
3.
सूक्ष्म से स्थूल
की ओर. एवं
4.
प्रमाण से
प्रत्यक्ष की ओर चलती है|
गुण–
1.
यह एक सरल और
सुविधाजनक विधि है,
2.
स्मरणशक्ति के
विकास में सहायक है।
3.
संक्षिप्त और
व्यवहारिक विधि है।
4.
बालक तेजी से सीखता
है।
दोष–
1.
रटनें की शक्ति पर
बल देती है।
2.
निजी विश्लेषण
क्षमता का प्रयोग न करनें के कारण मानसिक विकास और कल्पना शक्ति का विकास बाधित
होता है।
3.
रटा हुआ ज्ञान
स्थाई नहीं रह पाता है।
4.
छोटी कक्षाओं के
लिए सर्वथा अनुपयुक्त विधि
3. विश्लेषण विधि :- किसी विधान या व्यवस्थाक्रम की सूक्ष्मता से परीक्षण करने की तथा
उसके मूल तत्वों को खोजने की क्रिया को ‘विश्लेषण‘ नाम दिया जाता है।
·
यह विधि अज्ञात से
ज्ञात की ओर चलती है।
·
इसका प्रयोग
रेखागणित में प्रमेय, निर्मेय आदि को सिद्ध करनें में प्रयुक्त होता है.
जैसे – पाइथागोरस का प्रयोग, कर्ण का वर्ग = आधार का वर्ग + लम्ब पर बना वर्ग
गुण–
·
यह एक मनोवैज्ञानिक
विधि है, जो बालको में जिज्ञासा उत्पन्न कर उनमें अध्ययन के प्रति रूचि
उत्पन्न करती है।
·
स्वयं समस्या का
समाधान करने ,हल खोजनें पर बल देती है।
·
अन्वेषण क्षमता
अर्थात खोज करनें की क्षमता का विकास होता है।
·
स्थाई ज्ञान
उत्पन्न होता है।
दोष–
·
अधिक समय लेनें
वाली विधि है।
·
कुशल अध्यापन की
जरूरत होती है।
·
अधिक तर्क शक्ति, सूझ शक्ति की जरूरत होती है।
·
छोटी कक्षा के
बालकों के लिए अनुपयोगी मानी जाती है।
4. संश्लेषण विधि :- संश्लेषण का अर्थ होता है– अनेक को एक करना, अर्थात इस विधि में कई विधियों का उपयोग करके समस्या का समाधान
करनें पर बल दिया जाता है।
हिंदी पढ़ाने में पहले
वर्णमाला सिखाकर तब शब्दों का ज्ञान कराया जाता है। तत्पश्चात् शब्दों से वाक्य
बनवाए जाते हैं।
संश्लेषण विधि के
गुण-
1.
ज्ञात से अज्ञात की
ओर ले जाती है, अर्थात ज्ञात नियमो का प्रयोग करके अज्ञात परिणाम की प्राप्ति की
जाती है। उदाहरण– एक वृत्त की त्रिज्या 9 सेमी है, वृत का क्षेत्रफल क्या होगा।
2.
सरल और सुविधाजनक विधि मानी जाती है।
3.
समस्या का समाधान तीव्रता से संभव है।
4.
स्मरणशक्ति के विकास में सहयोग करती
है।
5.
ज्यादातर गणितीय समस्याओं का समाधान
इसी विधि के उपयोग से किया जाता है।
दोष–
1.
रटनें की प्रवृति
पर जोर देती है, जिससे अन्वेषण क्षमता के विकास का मौका उपलब्ध नहीं होता है।
2.
नवीन ज्ञान, तार्किक क्षमता और चिन्तन रहित विधि है, अर्थात इनके विकास में सहयोग नहीं करती है।
3.
अर्जित ज्ञान
अस्थाई होता है, अर्थात जब तक सूत्र याद है तभी तक समस्या का हल निकाला जा सकता है.
4.
छोटे बालकों में
चिन्तन शक्ति का ह्रास करती है।
5. प्रयोगशाला विधि :- इस विधि के प्रयोग के लिए हमें एक प्रयोगशाला की जरूरत होती है, जिसमें हम समस्याओं को यांत्रिक तरीकों से हल करते हैं।
जैसे– पाइथागोरस प्रमेय को प्रयोगशाला में सिद्ध करना।
गुण–
1.
रूचिकर विधि है।
2.
स्थाई अधिगम का
स्रोत
3.
तर्क क्षमता निगमन
क्षमता का विकास होता है।
4.
रचनात्मकता का
विकास होता है।
दोष–
1.
खर्चीली विधि है।
2.
कम संख्या वाली
कक्षा के लिए ही उपयोग में लाई जा सकती है।
3.
छोटे उम्र के
बच्चों में रूचि उत्पन्न नहीं कर पाती है।
6. असंधान विधि :- बोधपूर्वक किये गये प्रयत्न से तथ्यों को संकलित करके
सूक्ष्मग्राही तथा विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन या विश्लेषण करके नये तथ्य या
सिद्धान्तों की खोज करना ही अनुसंधान विधि है।
7. समस्या समाधान विधि :- किसी समस्या का समाधान या हल प्राप्त करनें के लिए क्रमबद्ध तरीके
से किसी सामान्य विधि या तदर्थ विधि का प्रयोग
करना पड़ता है, समस्या समाधान अधिगम के अन्तर्गत ( Learning by solving problem) के अन्तर्गत जीवन में आनें वाली नवीन समस्याओं के तरीको का हल
निकालना संभव होता है।
8. प्रयोजन विधि :- इस विधि में किसी भी समस्या के समाधान के लिए छात्र स्वयं किसी भी
समस्या का समाधान अपनीं स्वाभाविक तर्कशक्ति के द्वारा जानकारी प्राप्त करता है, तथा उससे अपनें व्यवहार मे परिवर्तन करके समस्या का हल खोजता है।
इस विधि में समस्या का हल खोजनें के
लिए प्रयोजन पूर्ण कार्य किये जातै है।
9. व्याख्यान विधि :- यह विधि शिक्षण की सबसे प्रचलित विधि है, इसमें एक कुशल अध्यापक अपने व्याख्यान द्वारा पूरी कक्षा या एक
समूह को उनकी समस्या के समाधान की विधि से परिचित कराता है।
10. विचार–विमर्श विधि :- इस विधि में बालक व अध्यापक अपने तर्कों द्वारा अपनीं समस्याओं को
एक दूसरे के अनुभव व ज्ञान के आधार पर सुलझानें का प्रयास करते हैं।
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