समावेशी
शिक्षा एक ऐसी
शिक्षण प्रक्रिया है जिसका उद्धेश्य प्रत्येक बच्चे को शिक्षा के एकसमान अवसर
प्रदान करना तथा पूर्ण भागीदारी हेतु उपयुक्त माहौल का निर्माण करना है जिससे
उनमें आत्मविश्वास का निर्माण हो सके |
माध्यमिक
स्तर पर नि:शक्तजन समावेशी शिक्षा योजना (ईडीएसएस) वर्ष 2009-10 से प्रारम्भ की गई है। यह योजना नि:शक्त बच्चों के लिए एकीकृत योजना
(आईईडीसी) संबंधी पहले की योजना के स्थान पर है और कक्षा IX-XII में पढने वाले नि:शक्त बच्चों की समावेशी शिक्षा के लिए सहायता प्रदान
करती है। यह योजना अब वर्ष 2013 से राष्ट्रीय माध्यमिक
शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के अंतर्गत सम्मिलित कर ली गई है ।
शिक्षा का समावेशीकरण यह
बताता है कि विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सामान्य छात्र और एक
अशक्त या विकलांग छात्र को समान शिक्षा प्राप्ति के अवसर मिलने चाहिए। इसमें एक
सामान्य छात्र एक अशक्त या विकलांग छात्र के साथ विद्यालय में अधिकतर समय बिताता
है। पहले समावेशी शिक्षा की परिकल्पना सिर्फ विशेष छात्रों के लिए की गई थी लेकिन
आधुनिक काल में हर शिक्षक को इस सिद्धांत को विस्तृत दृष्टिकोण में अपनी कक्षा में
व्यवहार में लाना चाहिए।
समावेशी शिक्षा या एकीकरण के
सिद्धांत की ऐतिहासक जड़ें कनाडा और अमेरिका से जुड़ीं हैं। प्राचीन शिक्षा पद्धति
की जगह नई शिक्षा नीति का प्रयोग आधुनिक समय में होने लगा है। समावेशी शिक्षा
विशेष विद्यालय या कक्षा को स्वीकार नहीं करता। अशक्त बच्चों को सामान्य बच्चों से
अलग करना अब मान्य नहीं है। विकलांग बच्चों को भी सामान्य बच्चों की तरह ही
शैक्षिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है।
साधारणतः छात्र एक कक्षा में अपनी आयु के हिसाब से रखे जाते
हैं चाहे उनका अकादमिक स्तर ऊँचा या नीचा ही क्यों न हो। शिक्षक सामान्य और
विकलांग सभी बच्चों से एक जैसा बर्ताव करते हैं। अशक्त बच्चों की मित्रता अक्सर
सामान्य बच्चों के साथ करवाई जाती है ताकि ऐसे ही समूह समुदाय बनता है। यह दिखाया
जाता है कि एक समूह दूसरे समूह से श्रेष्ठ नहीं है। ऐसे बर्ताव से सहयोग की भावना
बढती है।
उद्देश्य :-
सभी नि:शक्त छात्रों को आठ वर्षों की
प्राथमिक स्कूली पढ़ाई पूरी करने के पश्चात आगे चार वर्षों की माध्यमिक स्कूली
पढ़ाई समावेशी और सहायक माहौल में करने हेतु समर्थ बनाना।
लक्ष्य :-
योजना में नि:शक्त व्यक्ति अधिनियम (1995) और राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (1999) के अंतर्गत पढ़ने
वाले यथा-परिभाषित एक या अधिक नि:शक्तता नामश: दृष्टिहीनता, कम दृष्टि, कुष्ठ रोग उपचारित, श्रवण शक्ति की कमी, गतिविषय नि:शक्तता, मंदबुद्धिता, मानसिक रूग्णता, आत्म-विमोह और प्रमस्तिष्क घात वाले जिसमें अंतत: वाणी की हानि, अधिगम नि:शक्तता इत्यादि भी शामिल है। इसमें सरकारी, स्थानीय निकाय और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे
शामिल है, नि:शक्तता वाली बालिकाओं पर विशेष ध्यान दिया
जाता है जिससे उन्हें माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने और अपनी योग्यता का विकास
करने हेतु सूचना और मार्गदर्शन सुलभ हो। योजना के अंतर्गत हर राज्य में मॉडल
समावेशी स्कूलों की स्थापना करने की कल्पना की गई है।
संघटक :-
छात्र अभिमुखी घटक जैसे चिकित्सा और शैक्षिक
निर्धारण,
पुस्तकें और लेखन सामग्री, वर्दियां,
परिवहन भत्ता, रीडर पाठक भत्ता,
बालिकाओं के लिए वृत्तिका, सहायक सेवाएं,
सहायक युक्तियां, भोजन और आवास सुविधा,
रोगोपचार सेवाएं, शिक्षण अधिगम सामग्री
अन्य संघटकों में
विशेष शिक्षा शिक्षकों की नियुक्ति, ऐसे बच्चों को पढ़ाने हेतु सामान्य शिक्षकों के लिए भत्ते, शिक्षक प्रशिक्षण, स्कूल प्रशासकों का अभिविन्यास, संसाधन कक्ष की स्थापना, बाधायुक्त
वातावरण इत्यादि शामिल हैं।
कार्यान्वयन अभिकरण :-
राज्य सरकारें/संघ राज्य क्षेत्र (UT)
प्रशासन कार्यान्वयन अभिकरण हैं। इनमें नि:शक्तजनों की शिक्षा के क्षेत्र में
योजना कार्यान्वयन का अनुभव रखने वाले स्वैच्छिक संगठन भी शामिल हो सकते हैं।
वित्तीय सहायता :-
योजना में शामिल सभी मदों के लिए केन्द्रीय
सहायता 100 प्रतिशत आधार पर है। राज्य सरकारों से प्रतिवर्ष
प्रति नि:शक्त बच्चे के लिए केवल 600/- रूपए की
छात्रवृत्ति का प्रावधान रखना अपेक्षित है।
समावेशी शिक्षा के आधार :-
1. शाला एक समुदाय के रूप में
होती है पूरा समुदाय एक साथ सीखता है और
विशेष आवश्यकता वाला
बच्चा भी उस समुदाय का सदस्य होता है |
2. कक्षा के सभी बच्चों की शैक्षणिक
गुणवत्ता में बिना किसी भेदभाव के सुधर
लाना है |
3. प्रत्येक बालक स्वाभाविक रूप से सीखने के लिए अभिप्रेरित होता है ।
4. बालकों के सीखने के तौर तरीकों में विविधता होती है । अनुभवों के द्वारा, अनुकरण के
4. बालकों के सीखने के तौर तरीकों में विविधता होती है । अनुभवों के द्वारा, अनुकरण के
माध्यम से, चर्चा, प्रश्न पूछना, सुनना, चिंतन
मनन, खेल क्रियाकलापों, छोटे व बड़े
समूहों में गतिविधियों
करना आदि तरीकों
के माध्यम से बालक अपने आसपास के
परिवेश के बारे में जानकारी प्राप्त करता है । इसलिए प्रत्येक बालक को सीखने-सिखाने
के क्रम में समुचित अवसर प्रदान करना आवश्यक है।
5. बालकों को सीखने से पूर्व सीखने-सिखाने के लिए तैयार करना आवश्यक होता है इसके
5. बालकों को सीखने से पूर्व सीखने-सिखाने के लिए तैयार करना आवश्यक होता है इसके
लिए सकारात्मक वातावरण निर्मित करने की जरूरत होती है
6. बालक उन्ही सीखी हुई बातों के साथ अपना संबंध स्थापित कर पाता है जिनके बारे में
6. बालक उन्ही सीखी हुई बातों के साथ अपना संबंध स्थापित कर पाता है जिनके बारे में
उसके अपने परिवेश के कारण भली-भाँति समझ विकसित हो चुकी हो।
7. सीखने की प्रक्रिया विद्यालय के साथ साथ विद्यालय के बाहर भी निरन्तर चलती रहती
7. सीखने की प्रक्रिया विद्यालय के साथ साथ विद्यालय के बाहर भी निरन्तर चलती रहती
है । अतः सीखने-सीखने की प्रक्रिया कों इस प्रकार व्यवस्थित किये जाने की
आवश्यकता है जिससे बालक पूर्ण रूप से उसमें सम्मिलित हो जाये
और उसके बारे में
अपने आधार पर अपनी समझ विकसित करें ।
8. सीखने-सिखाने की प्रक्रिया आरम्भ करने से पूर्व बालक के सामाजिक, सांस्कृतिक ,
8. सीखने-सिखाने की प्रक्रिया आरम्भ करने से पूर्व बालक के सामाजिक, सांस्कृतिक ,
आर्थिक, भूगौलिक व राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
को जानना आवश्यक है|
9. प्रत्येक बालक की विविधता के प्रति आदर रखना ।
9. प्रत्येक बालक की विविधता के प्रति आदर रखना ।
समावेशी
शिक्षा की आवश्यकता :-
1. 90% विशेष आवश्यकता वाले
बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों में हैं जो कि ग्रामीण क्षेत्र में विशेष
विद्धालय न होने के कारण
सामान्य विद्धालय में पढ़ने आते हैं |
2. विशेष विद्धालयों के शहरी
क्षेत्रों में होने के कारण ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपने विशेष
आवश्यकता वाले बच्चों को
उनमे पढ़ने नहीं भेज पाते हैं |
3. ग्रामीण क्षेत्र के
विद्धालयों में सामान्य और विशेष आवश्यकता वाले साथ साथ पढ़ते हैं
विद्धालय में इनका
समावेशन अत्यंत आवश्यक है |
4. यह शिक्षा सभी बच्चों को
सामान अवसर प्रदान कर उन्हें मुख्या धारा से जोड़ने का कार्य
करती है |
5. समावेशित शिक्षा प्रत्येक बालक के लिए उच्च और उचित उम्मीदों के साथ,
उसकी
व्यक्तिगत शक्तियों का
विकास करती है |
6. प्रत्येक बालक स्वाभाविक रूप से सीखने के लिए अभिप्रेरित होता है ।
7. समावेशित शिक्षा अन्य बालकों, अपने स्वयं के व्यक्तिगत आवश्यकताओं और क्षमताओं
6. प्रत्येक बालक स्वाभाविक रूप से सीखने के लिए अभिप्रेरित होता है ।
7. समावेशित शिक्षा अन्य बालकों, अपने स्वयं के व्यक्तिगत आवश्यकताओं और क्षमताओं
के सामंजस्य स्थापित करने में सहयोग करती है ।
8. समावेशित शिक्षा सम्मान और
अपनेपन की विद्यालय संस्कृति के साथ- साथ व्यक्तिगत
मतभेदों को स्वीकार करने के लिए अवसर प्रदान करती है
9. समावेशित शिक्षा बालक को अन्य बालकों
के समान कक्षा गतिविधियों में भाग लेने और
व्यक्तिगत लक्ष्यों पर कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करती है
10. समावेशित शिक्षा बालकों की शिक्षा गतिविधियों में उनके माता-पिता को भी
10. समावेशित शिक्षा बालकों की शिक्षा गतिविधियों में उनके माता-पिता को भी
सम्मिलित करने की वकालत करती है ।
समावेशित
शिक्षा हेतु क्रियान्वयन :-
सर्व शिक्षा अभियान में यह तय किया गया कि सभी प्रकार के
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को उचित वातावरण में शिक्षा प्रदान की जाये तथा कोई भी
विशेष आवश्यकता वाला बच्चा शिक्षा की मुख्य धारा में जुड़ने से छूट न पाए | इसके
लिए निर्णय लिया गया कि -
1. विशेष
आवश्यकता वाले बच्चों की कम उम्र मैं ही जन स्वास्थ्य केंद्र या एकीकृत बाल विकास
केंद्र के माध्यम से पहचान की
जाये |
2. जहाँ तक संभव हो विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ ही सामान्य
2. जहाँ तक संभव हो विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ ही सामान्य
विद्धालयों में ही शिक्षा दी
जाये |
3. विशेष
आवश्यकता वाले बच्चों को आवश्यक सहायक सामग्री एवं उपकरण प्रदान किये जाएँ |
4. सहायक
सेवाओं जैसे बाधारहित वातावरण ,संसाधन कक्ष, विशेष पाठ्य सामग्री, विशेष
शैक्षिक तकनीक, उपचारात्मक
शिक्षण सामग्री की व्यवस्था की जाये |
5. विशेष
आवश्यकता वाले बच्चों को इस प्रकार कि शिक्षा हेतु प्रशिक्षित करने हेतु सघन
शिक्षक
प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित
किये जाएँ |
समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका :-
शिक्षक कक्षा में सहयोग की भावना बढ़ाने के लिए कुछ तरीको का
उपयोग करते हैं :-
1. समुदाय भावना को बढ़ाने के लिए खेलों का
आयोजन
2. विद्यार्थियों को समस्या के समाधान में
शामिल करना
3. किताबों और गीतों का आदान-प्रदान
4. सम्बंधित विचारों का कक्षा में
आदान-प्रदान
5. छात्रों में समुदाय की भावना बढ़ाने के
लिए कार्यक्रम तैयार करना
6. छात्रों को शिक्षक की भूमिका निभाने का
अवसर देना
7. विभिन्न क्रियाकलापों के लिए छात्रों का
दल बनाना
8. प्रिय वातावरण का निर्माण करना
9. बच्चों के लिए लक्ष्य-निर्धारण
10.अभिभावकों का सहयोग लेना
11.विशेष प्रशिक्षित शिक्षकों
की सेवा लेना
दल शिक्षण
पद्धति द्वारा सामान्यतः व्यवहार में आने वाली समावेशी प्रथाएँ :-
1. एक शिक्षा, एक सहयोग— इस मॉडल में एक शिक्षक शिक्षा देता है और दूसरा प्रशिक्षित
शिक्षक
विशेष छात्र की आवश्यकताओं को और कक्षा को सुव्यवस्थित रखने में सहयोग
करता
है।
2. एक शिक्षा एक निरीक्षण –एक शिक्षा देता है दूसरा छात्रों का निरीक्षण करता है।
3. स्थिर और घूर्णन शिक्षा — इसमें कक्षा को अनेक भागों में बाँटा जाता है। मुख्यशिक्षक
शिक्षण
कार्य करता है दूसरा विशेष शिक्षक दूसरे दलों पर इसी की जाँच करता है।
4. समान्तर शिक्षा – इसमें आधी कक्षा को मुख्य शिक्षक तथा आधी को विशिष्ट
शिक्षा प्राप्त
शिक्षक शिक्षा देता है।
दोनों समूहों को एक जैसा पाठ पढ़ाया जाता
है।
5. वैकल्पिक शिक्षा – मुख्य शिक्षक अधिक छात्रों को पाठ पढ़ाता है जबकि विशिष्ट
शिक्षक
छोटे समूह को दूसरा पाठ
पढ़ाता है।
6. समूह शिक्षा – यह पारंपरिक शिक्षा पद्धति है। दोनों शिक्षक योजना बनाकर शिक्षा देते
हैं। यह काफ़ी सफल शिक्षण
पद्धति है।
शिक्षके प्रशिक्षन कौशल कैसेे होगा? Please send me details
ReplyDeleteSmaveshi shiksha k shetr kya h
ReplyDeleteInclusive education ka scope kya h??
ReplyDeleteSir objective type questions daal do plz inclusive education pr...
ReplyDeleteSamaveshi sikhsha mein pathykarm mein parivartan karte samye kin baato ko dhayn mein rakhna chahiye
ReplyDeleteSir policies and programmes related to inclusive education ko bhi plz mention kr dijiye
ReplyDelete