अधिनियम सम्बन्धी प्रमुख तथ्य
१. इस अधिनियम (SC/ST ACT) का क्रमांक वर्ष 1989 का 33 है |
२. राष्ट्रपति ने इस अधिनियम(SC/ST ACT) को अपनी स्वीकृति 11 सितम्बर 1989 को प्रदान की
३. यह अधिनियम(SC/ST ACT) 30 जनवरी 1990 को लागू हुआ |
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम PDF
sc st act हिंदी में
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इस कानून की तीन विशेषताएँ हैं :
1. SC/ST ACT अनुसूचित जातियों और जनजातियों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ़ अपराधों को दंडित करता है।
2. SC/ST ACT पीड़ितों को विशेष सुरक्षा और अधिकार देता है।
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अधिनियम के मुख्य उदयेश्य
- · SC/ST के विरूद्ध अत्याचारों को रोकना |
- · SC/ST के विरूद्ध हुये अत्याचारों की trial ले लिए विशेष न्यायलय का प्रबंध |
- · इस प्रकार के अपराधों के लिए विशेष न्यायालयों का प्रबंध |
- · ऐसे अपराधों से पीडित व्यक्ति को रहत देने का और उनके पुनर्वास का उपबंध करने के लिए अधिनियम |
आर्थिक बहिष्कार
यदि कोई व्यक्ति किसी अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के सदस्य से व्यापार करने से इनकार करता है तो इसे आर्थिक बहिष्कार कहा जाएगा।
आर्थिक बहिष्कार की श्रेणी में आने वाली गतिविधियां
· किसी अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के सदस्य के साथ काम करने या उसे काम पर रखने/नौकरी देने से इनकार करना।
· अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के सदस्य को सेवा न प्रदान करना अथवा उन्हें सेवा प्रदान करने न देना।
· सामान्यतः व्यापार जैसे किया जाता है उस तरीके में बदलाव लाना क्योंकि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति का सदस्य इसमें शामिल है।
सामाजिक बहिष्कार
सामाजिक बहिष्कार तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के साथ संपर्क में आने से इनकार करता है या उसे अन्य समूहों से अलग रखने की कोशिश करता है।
यदि कोई सरकारी अधिकारी (जो कि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है) , अभिप्रायपूर्वक/जानबूझकर इस अधिनियम के तहत दिए गए कर्तव्यों का पालन नहीं करता है तो उसे ६ महीने से १ साल तक के कारावास की सज़ा दी जा सकती है। एक अधिकारी पर केस तभी किया जा सकता है जब मामले की जाँच हो चुकी हो, और जाँच की रिपोर्ट में यह रास्ता सुझाया गया हो।
सरकारी अधिकारियों के कर्तव्य:
· FIR दर्ज करना |
· हस्ताक्षर लेने से पहले पुलिस थाने में दिए गए बयान को पढ़ कर सुनाना |
· जानकारी देने वाले व्यक्ति को बयान की प्रतियाँ (COPIES) देना |
· पीड़ित या गवाह का बयान रिकॉर्ड (RECORD)/दर्ज़ करना |
· FIR दर्ज़ करने के 60 दिन के अन्दर अपराध की जाँच करना और चार्जशीट/ आरोप पत्र पेश करना |
· दस्तावेज़ तैयार करना और दस्तावेज़ों का सटीक अनुवाद करना |
यह कानून SC/ST वर्ग के सम्मान, स्वाभिमान, उत्थान एवं उनके हितों की रक्षा के लिए भारतीय संविधान में किये गये विभिन्न प्रावधानों के अलावा इन जातीयों के लोगों पर होने वालें अत्याचार को रोकनें के लिए 16 अगस्त 1989 को उपर्युक्त अधिनियम लागू किये गये।
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भारत सरकार ने दलितों पर होने वालें विभिन्न प्रकार के अत्याचारों को रोकनें के लिए भारतीय संविधान की अनुच्छेद 17 के आलोक में यह विधान पारित किया। SC/ST ACT में छुआछूत संबंधी अपराधों के विरूद्ध दण्ड में वृद्धि की गई हैं तथा दलितों पर अत्याचार के विरूद्ध कठोर दंड का प्रावधान किया गया हैं। SC/ST ACT के अन्तर्गत आने वालें अपराध संज्ञेय गैरजमानती और असुलहनीय होते हैं।
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SC/ST ACT उस व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति(SC), अनुसूचित जनजाति(ST) का सदस्य नहीं हैं और इस वर्ग के सदस्यों पर अत्याचार का अपराध करता है़। SC/ST ACT की धारा 3(1) के अनुसार जो कोई भी यदि वह अनुसूचित जाति(SC), अनुसूचित जनजाति(ST) का सदस्य नहीं हैं और इस वर्ग के सदस्यों पर अत्याचार करता है तो उसे इस SC/ST ACT में वर्णित दण्ड द्वारा दण्डित किया जावेगा |
धाराओं के अंतर्गत अधिनियम का विवरण
SC/ST Act की धाराएँ
धारा (1)-
· SC/ST ACT का नाम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचारण निवारण ) अधिनियम 1989 है |
· यह अधिनियम(SC/ST ACT) जम्मू कश्मीर को छोडकर शेष सम्पूर्ण भारत में लागू है |
धारा (2)-
· SC/ST का अर्थ वही होगा जो अनुच्छेद 366 के खंड 24 एवं 25 में परिभाषित है |
धारा (3)-
· इस अधिनियम (SC/ST ACT) में किये गए अपराध एवं उनके दण्ड निम्नलिखित हैं -
1. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के सदस्यों को जबरन अखाद्य या घृणाजनक (मल मूत्र इत्यादि) पदार्थ खिलाना या पिलाना।
2. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के किसी सदस्य को शारीरिक चोट पहुंचाना या उनके घर के आस-पास या परिवार में उन्हें अपमानित करने या क्षुब्ध करने की नीयत से कूड़ा-करकट, मल या मृत पशु का शव फेंक देना।
3. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के किसी सदस्य के शरीर से बलपूर्वक कपड़ा उतारना या उसे नंगा करके या उसके चेहरें पर पेंट पोत कर सार्वजनिक रूप में घुमाना या इसी प्रकार का कोई ऐसा कार्य करना जो मानव के सम्मान के विरूद्ध हो।
4. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के किसी सदस्य के भूमि पर से गैर कानूनी-ढंग से खेती काट लेना, खेती जोत लेना या उस भूमि पर कब्जा कर लेना।
5. अनुसूचित जाति, अनुसूचित (SC/ST) जनजाति के किसी सदस्य को गैर कानूनी-ढंग से उनकें भूमि से बेदखल कर देना (कब्जा कर लेना) या उनके अधिकार क्षेत्र की सम्पत्ति के उपभोग में हस्तक्षेप करना।
6. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के सदस्य को भीख मांगनें के लिए मजबूर करना या उन्हें बुंधुआ मजदूर के रूप में रहने को विवश करना या फुसलाना।
7. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के सदस्य को वोट (मतदान) नहीं देने देना या किसी खास उम्मीदवार को मतदान के लियें मजबूर करना।
8. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के किसी सदस्य के विरूद्ध झूठा, परेशान करने की नीयत से इसे पूर्ण अपराधिक या अन्य कानूनी आरोप लगा कर फंसाना या कारवाई करना।
9. किसी लोक सेवक (सरकारी कर्मचारी/ अधिकारी) को कोई झूठा साक्ष्य/सूचना /जानकारी देना और उसके विरूद्ध अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति पहुंचाने के लियें ऐसें लोक सेवक उसकी विधि पूर्ण शक्ति का प्रयोग करना।
10. अनुसूचित जाति, अनुसूचित (SC/ST) जनजाति के किसी सदस्य को जानबूझकर जनता की नजर में जलील कर अपमानित करना, डराना।
11. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के किसी महिला सदस्य को अनादार करना या उन्हें अपमानित करने की नीयत से शील भंग करने के लिए बल का प्रयोग करना।
12. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के किसी महिला का उसके इच्छा के विरूद्ध या बलपूर्वक यौन शोषण करना।
13. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के सदस्यों द्वारा उपयोग में लायें जाने वालें जलाशय या जल स्त्रोतों का गंदा कर देना अथवा अनुपयोगी बना देना।
14. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के सदस्यों को किसी सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोकना, अधिकारों से वंचित करना या ऐसे स्थान पर जानें से रोकना जहां वह जा सकता हैं।
15. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के किसी सदस्य को अपना मकान अथवा निवास स्थान छोड़नें पर मजबूर करना या करवाना।
दण्ड / सजा
SC/ST ACT में ऊपर वर्णित अत्याचार के अपराधों के लियें दोषी व्यक्ति को 6 माह से 5 साल तक की सजा, अर्थदण्ड (फाइन) के साथ प्रावधान हैं। क्रूरतापूर्ण हत्या के अपराध के लिए मृत्युदण्ड की सजा हैं।
अधिनियम(SC/ST ACT) के तहत विशेष अत्याचार
· यदि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के खिलाफ झूठा गवाही देता है या गढ़ता हैं जिसका आशय किसी ऐसे अपराध में फँसाना हैं जिसकी सजा मृत्युदंड या आजीवन कारावास जुर्मानें सहित है। और इस झूठें गढ़ें हुयें गवाही के कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को फाँसी की सजा दी जाती हैं तो ऐसी झूठी गवाही देने वालें मृत्युदंड के भागी होंगें।
· यदि वह मिथ्या साक्ष्य के आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लियें दोष सिद्ध कराता हैं जिसमें सजा सात वर्ष या उससें अधिक है तो वह जुर्माना सहित सात वर्ष की सजा से दण्डनीय होगा।
· आग अथवा किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा किसी ऐसे मकान को नष्ट करता हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणतः पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता हैं, वह आजीवन कारावास के साथ जुर्मानें से दण्डनीय होगा।
· लोक सेवक होत हुयें इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा, वह एक वर्ष से लेकर इस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा। अधिनियम की धारा 4 (कर्तव्यों की उपेक्षा के दंड) के अनुसार कोई भी सरकारी कर्मचारी/अधिकारी जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं, अगर वह जानबूझ कर इस अधिनियम के पालन करनें में लापरवाही करता हैं तो वह दण्ड का भागी होता। उसे छः माह से एक साल तक की सजा दी जा सकती हैं।
धारा (4)- कर्तव्यों के उपेक्षा के लिए दण्ड (SC/ST ACT-1989)
· अगर कोई लोक सेवक जो SC/ST का नहीं है, इस अधिनयम में पालन किये जाने वाले कर्तव्यों की उपेक्षा करेगा तो उसे कम से कम 6 माह() और अधिकतम 1 वर्ष की सजा हो सकती है |
धारा (5)- पश्चातवर्ती दोष (पुनरावृति) सिद्ध होने पर दण्ड
· आगर कोई व्यक्ति जो SC/ST का नहीं है, और इस अधिनियम के अंतर्गत पहले भी अपराध कर दोष सिद्ध हो चुका है तो दोबारा अपराध करने पर उसे कम से कम 1 वर्ष और अधिकतम उस अपराध के लिए तय दण्ड मिलेगा |
धारा (6)- भारतीय संहिता के उपबंधों का लागू होना
· इस अधिनियम के साथ भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) की धारा 34, अध्याय 3, 4, 5, 5-(क), 23, धारा 149 भी लागू होंगी, परन्तु यह अधिनियम इन पर भारी होगा |
धारा (7)- व्यक्तियों की संपत्तियों का समपहरण(SC/ST ACT-1989)
· अगर कोई व्यक्ति SC/ST ACT. में दोषी पाया जाता है तो उसकी चल एवं अचल संपत्ति को विशेष न्यायलय सरकार को समपहरित() कर सकता है |
· अगर कोई व्यक्ति अधिनियम में अभियुक्त है, तो विशेष न्यायालय उसकी संपत्ति को विचारण की अवधि में कुर्क कर सकता है और दोष सिद्ध होने पर उस संपत्ति को समपहरित कर सकता है |
धारा(8)- अपराधों के बारे में उपधारणा (SC/ST ACT-1989)
· अगर कोई व्यक्ति किसी एस SC/ST ACT के अभियुक्त की वित्तीय सहायता करता है तो विशेष न्यायालय यह मानेगा कि सहायता करने वाले व्यक्ति ने अपराध का दुष्प्रेरण किया है |
· अगर कोई व्यक्तियों का समूह SC/ST के विरूद्ध कोई अपराध करता है और यह सिद्ध जो जाता है कि यह अपराध किसी भूमि या अन्य विषय के विवाद का फल है तो यह मन जायेगा कि यह एक सामान्य अपराध है |
धारा(9)- शक्तियों का प्रदान किया जाना
· राज्य शासन अगर जरुरी समझे तो वह किसी वाद या SC/ST ACT के लिए किसी कोर्ट, किसी अधिकारी को व्यक्तियों के विरुद्ध उपयुक्त कार्यवाही की शक्तियां प्रदान कर सकता है |
निष्कासन (धारा- 10,11,12,13 )
एस.सी./एस.टी. एक्ट की धारायें 10-13 निष्कासन से सम्बंधित है इन धाराओं में व्यक्तियों क्षेत्र या शहर से निकला जा सकता है जो अधिकतम 2 बर्ष के लिए होता है इस से सम्बंधित सभी धाराएँ निम्न लिखित हैं -
धारा(10)-
· यदि विशेष न्यायालय किसी शिकायत या पुलिस विवेचना से संतुष्ट होती है कि कोई व्यक्ति SC/ST के विरुद्ध अपराध करने वाला है तब कोर्ट लिखित में उस व्यक्ति को उस क्षेत्र से, आदेशित मार्ग से, आदेशित समय तक हटने के निर्देश दे सकता है परन्तु उस व्यक्ति को अधिकतम २ वर्ष के लिए ही हटाया जा सकता है | न्यायालय को उस व्यक्ति को आदेश एवं उसके आधार से सूचित करना पड़ेगा |
धारा(11)-
· अगर व्यक्ति जिसे किसी क्षेत्र से हटने के आदेश दिए गए हों और वह वहां से नहीं हटता है या तय समय से पहले वापस आ जाता है तो न्यायालय के आदेश पर पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेगी, परन्तु न्यायालय की आगया से वह अस्थायी समय के लिए आ सकता है |
धारा(12)-
· अगर पुलिस जरुरी समझे तो वह न्यायालय के आदेश से उपरोक्त व्यक्ति का फोटो और माप ले सकती है अगर व्यक्ति देने से मन करता है तो उपयुक्त प्रयास किये जा सकते हैं और मन करने को अपराध माना जायेगा | अगर धारा 10 में वर्णित आदेश निरस्त कर दिया जाये तो ये फोटो निगेटिव के साथ नष्ट कर दी जाएगी |
धारा(13)-
· अगर कोई व्यक्ति विशेष न्यायालय के आदेश नहीं मानता है तो उसे एक वर्ष का कारावास एवं जुर्माने की सजा होगी |
अन्य प्रावधान
धारा-14 (विशेष न्यायालय की व्यवस्था)
· इस धारा के अन्तर्गत इस अधिनियम के तहत चल रहे मामले को तेजी से ट्रायल (विचारण) के लियें विशेष न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इससे फैसलें में विलम्ब नहीं होता हैं और पीड़ित को जल्द ही न्याय मिल जाता हैं।
धारा (15)- विशेष लोक अभियोजक
· इस अधिनियम के अधीन विशेष न्यायालय में चल रहें मामलें को तेजी से संचालन के लिये एक अनुभवी लोक अभियोजक (सरकारी वकील) नियुक्त करने का प्रावधान हैं।
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धारा (16)-
· राज्य शासन किसी क्षेत्र के लोगो पर सामूहिक जुर्माना सिविल अधिकार सरंक्षण अधिनियम 1955 में वर्णित लगा सकती है |
धारा (17)- निवारक कार्यवाही
· इस अधिनियम के अधीन मामलें से संबंधित जाँच पड़ताल डी.एस.पी. स्तर का ही कोई अधिकारी करेगा। कार्यवाही करने के लियें पर्याप्त आधार होने पर वह उस क्षेत्र को अत्याचार ग्रस्त घोषित कर सकेगा तथा शांति और सदाचार बनायें रखने के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा तथा निवारक कार्यवाही कर सकेगा।
धारा (18)- अग्रिम जमानत
· इस अधिनियम के तहत अपराध करने वालें अभियुक्तों को जमानत नहीं होगी।
धारा (19)-
· इस अधिनियम में दोषी पर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 360 एवं अपराधी परीवीक्ष अधिनियम 1958 लागू नहीं होती | अगर दोषी की उम्र 18 वर्ष या उस से उपर है |
धारा (20)- अन्य विरोधियों पर अध्यारोही
· जब तक विशेष उपबंध न हो तब तक यह अधिनियम हर प्रथा या विधि से उपर होगा |
धारा (21)- शासन के कर्त्तव्य
1. में कहा गया हैं कि इस अधिनियम के प्रभावी ढंग ये कार्यान्वयन के लिये राज्य सरकार आवश्यक उपाय करेगी।
2. (क) के अनुसार पीड़ित व्यक्ति के लियें पर्याप्त के लियें सुविधा एवं कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई हैं।
(ख) इस अधिनियम के अधीन अपराध के जाँच पड़ताल और ट्रायल (विचारण) के दौरान गवाहों एवं पीड़ित व्यक्ति के यात्रा भत्ता और भरण-पोषण के व्यय की व्यवस्था की गई हैं।
(ग) के अन्तर्गत सरकार पीड़ित व्यक्ति के लियें आर्थिक सहायता एवं सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था करेगी।
(घ) के अनुसार ऐसे क्षेत्र का पहचान करना तथा उसके लियें समुचित उपाय करना जहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर अत्यधिक अत्याचार होते हैं।
3. अधिनियम की धारा 21 (3) के अनुसार केन्द्र सरकार राज्य सरकार द्वारा अधिनियम से संबंधित उठायें गयें कदमों एवं कियें गयें उपायों में समन्यव के लियें आवश्यकतानुसार सहायता करेगी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1995 यह नियम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 का ही विस्तार हैं। अधिनियम के अधीन दर्ज मामलें को और अधिक प्रभावी बनानें तथा पीड़ित व्यक्ति को त्वरित न्याय एवं मुआवजा दिलाने के लियें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण नियम 1995 पारित किया गया हैं।
धारा (22)- सदभाव पूर्ण की गयी कार्यवाही के लिए संरक्षण
· किसी भी केंद्र शासन या शासन या व्यक्ति या अधिकारी के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं की जावेगी अगर उसने कोई कार्य इस अधिनियम के तहत सदभाव पूर्ण किया हो |
धारा (23)- नियम बनाने की शक्ति
· इस अधिनियम के अंतर्गत नियम केंद्र शासन बनाती है इसके लिए इस नियम को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष 30 दिन के लिए रखा जाता है
उपधारायें
धारा 5 (1) (थाना में थाना प्रभारी को सूचना संबंधी)-
· इसके अनुसार अधिनियम के तहत किये गयें अपराध के लियें प्रत्येंक सूचना थाना प्रभारी को दियें जानें का प्रावधान हैं। यदि सूचना मौखिक रूप से दी जाती हैं तो थाना प्रभारी उसे लिखित में दर्ज करेंगें। लिखित बयान को पढ़कर सुनायेंगें तथा उस पर पीड़ित व्यक्ति का हस्ताक्षर भी लेंगें। थाना प्रभारी मामलें को थाना के रिकार्ड में पंजीकृत कर लेगें।
धारा 5 (2)
* उपनियम के तहत दर्ज एफ.आई. आर. की एक कापी पीड़ित को निःशुल्क दिया जायेगा।
धारा 5 (3)
* अगर थाना प्रभारी एफ.आई. आर. लेने से इन्कार करतें हैं तो पीड़ित व्यक्ति इसे रजिस्ट्री द्वारा एस. पी. को भेज सकेगा। एस.पी. स्वंय अथवा डी. एस.पी. द्वारा मामलें की जाँच पड़ताल करा कर थाना प्रभारी को एफ.आई. आर.दर्ज करने का आदेश देंगें।
धारा-6
· डी.एस.पी. स्तर का पुलिस अधिकारी अत्याचार के अपराध की घटना की सूचना मिलतें ही घटना स्थल का निरीक्षण करेगा तथा अत्याचार की गंभीरता और सम्पत्ति की क्षति से संबंधित रिर्पोट राज्य सरकार को सौंपेगा।
धारा-7(1)-
· इस अधिनियम के तहत कियें गयें अपराध की जाँच डी.एस.पी. स्तर का पुलिस अधिकारी करेगा। जाँच हेतु डी.एस.पी. की नियुक्ति राज्य सरकार/डी.जी.पी. अथवा एस.पी. करेगा। नियुक्ति के समय पुलिस अधिकारी का अनुभव, योग्यता तथा न्याय के प्रति संवेदनशीलता का ध्यान रखा जायेगा। जाँच अधिकारी (डी.एस.पी.) शीर्ष प्राथमिकता के आधार पर घटना की जाँच कर तीस दिन के भीतर जाँच रिर्पोट एस.पी.को सौपेगा। इस रिर्पोट को एस.पी.तत्काल राज्य के डी.जी.पी. को अग्रसारित करेगें।
धारा-11(1) में यह प्रावधान किया गया हैं कि
· मामलें की जाँच पड़ताल, ट्रायल (विचारण) एवं सुनवाई के समय पीड़ित व्यक्ति उसके गवाहों तथा परिवार के सदस्यों को जाँच स्थल अथवा न्यायालय जाने आने का खर्च दिया जायेगा। (2) जिला मजिस्ट्रेट/ एस.डी.एम. या कार्यपालक दंडाधिकारी अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति और उसके गवाहों के लियें न्यायालय जानें अथवा जाँच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होने के लियें यातायात की व्यवस्था करेगा अथवा इसका लागत खर्च भुगतान करने की व्यवस्था करेगा।
धारा 12 (1) में कहा गया हैं कि
· जिला मजिस्ट्रेंट और एस.पी. अत्याचार के घटना स्थल की दौरा करेंगें तथा अत्याचार की घटना का पूर्ण ब्यौरा भी तैयार करेंगें।
धारा 12 (3)
· एस.पी. घटना के मुआवजा करनें के बाद पीड़ित व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेंगें तथा आवश्यकतानुसार उस क्षेत्र में पुलिस बल की नियुक्ति करेंगें।
धारा 12 (4)
· इसके अनुसार डी.एम./एस.डी.एम. पीड़ित व्यक्ति तथा उसके परिवार के लियें तत्काल राहत राशि उपलब्ध करायेंगें साथ ही उचित मानवोचित सुविधा प्रदान करायेगें।
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MY talash ended here..
ReplyDeletethank u sir..
Thank you sir ji
ReplyDeleteThank you sir ji
ReplyDeletesir pdf kaise download kare bataye
ReplyDeletetake screen shots on mobile
DeleteJald hi isaki pdf available kara di jayegi
ReplyDeletethanks sir ...
ReplyDeletePlz give pdf
ReplyDeleteNice sir
ReplyDeleteThanks sir
ReplyDeleteThanks sir
ReplyDeletegreat aarticle sir
ReplyDeleteसमानता और स्वाभिमान पर सभी का हक है
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