साहित्य की द्रष्टि से आदिकाल से ही सम्रद्ध रहा है कालिदास, भवभूति, बाणभट्ट, भूषन, केसवदास, भर्तहरि, पद्माकर, ईसुरी, सिंगाजी, माखन लाल चतुर्वेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान, गजानन माधव मुक्तिबोध, बाल कृष्ण शर्मा ‘नवीन’, हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, मुल्ला रमूजी, आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी, अटल बिहारी बाजपेयी, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन आदि मध्य प्रदेश के वे साहित्य सृजक हैं जिन्होंने मध्यप्रदेश को साहित्य के क्षेत्र में एक सम्रद्ध विरासत सोंपी है जो पीढ़ियों तक मध्य प्रदेश और देश के साहित्य प्रेमियों को मध्य प्रदेश की साहित्यिक विरासत को याद दिलाती रहेगी तथा साहित्य पिपासु विद्यार्थिओं की जिज्ञासा शांत करने के साथ उनको मध्यप्रदेश और देश के साहित्य तथा इतिहास से परिचित कराती रहेगी.
MPPSC, MPPEB, MPTET, MP HIGH SCHOOL TEACHER ELIGIBILITY TEST के हिंदी विषय में मध्यप्रदेश के साहित्यकारों से सम्बन्धित कई प्रश्न पूछे जाते हैं, इसलिए इन साहित्यकारों से सम्बन्धित समस्त महत्वपूर्ण जानकारी यहाँ प्रस्तुत की जा रही है आशा ही नहीं पूर्ण विश्वाश है कि मध्यप्रदेश में आयोजित बिभिन्न परीक्षाओं में शामिल होने जा रहे अभ्यर्थियों के अलावा हिंदी साहित्य के अन्य अध्येताओं को भी इस आलेख 'मध्य प्रदेश के प्रमुख साहित्यकार' से मदद मिलेगी और उन्हें अपेक्षित सफलता हासिल होगी.
मध्य प्रदेश के प्रमुख साहित्य कारों का विवरण निम्नानुसार है -
(1) कालिदास -
मध्यप्रदेश के साहित्य के सर्वाधिक देदीप्त्मान सूर्य एवं कालिदास की जन्मतिथि विवादित है कुछ लोग इनका जन्म ई. पू. प्रथम शताब्दी में मानते हैं तथा कुछ इतिहासकार इनका जन्म चौथी शताब्दी में होना मानते हैं इनका जन्मस्थान भी विवादित है विभिन्न मतों के अनुसार इनका जन्मस्थान अलग-अलग मालवा, मिथिला, कश्मीर माना जाता है, जन्म तिथि , जन्म स्थान की तरह ही इनके आश्रय दाता राजा के बारे में विभिन्न मत हैं नाटककार अश्वघोष की रचनाओं से समानता के कारण कुछ लोग इन्हें मालवा नरेश विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक मानते हैं तथा कुछ लोग इन्हें चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक मानते हैं .कालिदास की तुलना शेक्सपीयरसे की जाती है .
कालिदास के नाटकों में उच्चवर्गीय पात्र संस्कृत तथा निम्न वर्गीय पात्र प्राकृत भाषा का प्रयोग करते हैं उनके सभी नाटक सुखांत हैं.
कालिदास के साहित्य की मूल भाषा संस्कृत है जो सरस, परिष्कृत, एवं भावानुकूल है, उन्होंने अलंकारों का सहज प्रयोग किया है तथा संवाद बहुत चुस्त हैं, उनकी रचनाओं में अनुभूति को प्रधानता देते हुए मानवीय भावनाओं एवं प्रकृति का सजीव एवं सहज चित्रण किया गया है
कालिदास की प्रमुख रचनाएँ -
नाटक - अभिज्ञान शाकुंतलम, विक्रमोवर्शीयम, माल्विकाग्निमित्रम
खंडकाव्य - मेघदूतम, कुमारसंभवम, रघुवंशम, ऋतुसंहार
अभिज्ञान शाकुंतलम - कालिदास की यह सर्वकालिक श्रेष्ठ कृति राजा दुष्यंत और शकुन्तला के प्रेम, प्रणय, मिलन और विरह प्रसंग से सम्बन्धित है इस मौलिक रचना में मानवीय भावनाओं का उन्नत चित्रण किया गया है. संस्कृत की यह पहली रचना है जिसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया. अभिज्ञान शाकुंतलम को पढ़कर जर्मन कवि गेटे इतने प्रभावित हुए थे की उन्होंने इसे सर्वांगपूर्ण रचना माना तथा वे कहते थे की इसे पढ़कर उनकी आत्मा को शांति मिलती है. यह कहानी महाभारत का भाग मानी जाती है
विक्रमोवर्शीयम - कालिदास रचित पाँच अंकों के इस संस्कृत नाटक में राजा पुरुरवा तथा अप्सरा उर्वशी का प्रेम और उनके विवाह की कथा है।
माल्विकाग्निमित्रम - यह कालिदास रचित पाँच अंकों का संस्कृत नाटक है।जिसमे मालवदेश की राजकुमारी मालविका तथा विदिशा के राजा अग्निमित्र के प्रेम और उनके विवाह का वर्णन है। यह शृंगार रस प्रधान नाटक है और कालिदास की प्रथम नाट्य कृति माना जाता है। इसमें शुंग इतिहास का वर्णन है
मेघदूतम - यह संस्कृत काव्यों में सर्वांगपूर्ण,एवं विशिष्ट तथा लोकप्रिय दूतकाव्य रचना है जिसमें एक विरही यक्ष की कहानी है जो मेघ के माध्यम से अपनी प्रेयसी को सन्देश भेजता है इस काव्य कृति में मानवीय भावनाओं तथा प्रकृति का अद्वितीय चित्रण है. नागार्जुन ने मेघदूत के हिन्दी अनुवाद की भूमिका में इसे हिन्दी वाङ्मय का अनुपम अंश बताया है
कुमारसंभवम - कुमारसंभवं अर्थात कुमार का जन्म . 17 सर्गों में विभाजित इस महाकाव्य में शिव पार्वती के विवाह एवं कार्तिकेय के जन्म की कथा का वर्णन है.
रघुवंशम - 19 सर्गों में विभाजित इस महाकाव्य में रघुवंश (राजा राम का वंश) के 29 राजाओं यथा दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कुश आदि का वर्णन किया गया है.
ऋतुसंहार - 'ऋतुसंहार' का शाब्दिक अर्थ है- ऋतुओं का समूह। इस खण्डकाव्य में कवि ने अपनी प्रिया को सबोधित कर छह ऋतुओं का छह सर्गों में सांगोपांग वर्णन किया है। यह कालिदास का एक विख्यात काव्य है। यह महाकवि कालिदास की प्रथम काव्यरचना मानी जाती है, जिसके छह सर्गो में ग्रीष्म से आरंभ कर वसंत तक की छह ऋतुओं का सुंदर प्रकृति चित्रण प्रस्तुत किया गया है
(2) भवभूति - संस्कृत के महान कवि एवं श्रेष्ठ नाटककार भवभूति का जन्म 8वीं शताब्दी में विदर्भ देश के पदमपुर में हुआ था ये भट्टगोपाल के पोते थे. इनके पिता का नाम नीलकंठ तथा माता का नाम जतुकरणी था इनके गुरु ज्ञाननिधि या कुमारिल भट्ट थे इनका मूल नाम श्रीकंठ, नाटककार के रूप में नाम भवभूति, दार्शनिक नाम उम्बेक, अद्वैत मत में दीक्षित नाम सुरेशाचार्य माना जाता है.कल्हण की राजतरंगिणी के वर्णन के अनुसार भवभूति कन्नौज के राजा यशोवर्मन के सभापण्डित थे. इनका अधिकांश समय उज्जैन में बीता. इन पर महाकवि वाल्मीकि का विशेष प्रभाव है तथा इनके नाटकों में हास्य का नितांत अभाव है . इनके नाटकों में कोई विदूषक पात्र नहीं है. इनकी तुलना मिल्टन से की जाती है
भवभूति द्वारा रचित नाटक - महावीरचरित, उत्तररामचरित, मालती माधव
महावीरचरित - वीर रस प्रधान इस नाटक में राम विवाह से लेकर राम के राज्याभिषेक तक की कथा का वर्णन है .
उत्तररामचरित - करुण रस प्रधान इस नाटकीय काव्य में सीता के अयोध्या से निष्काषन से प्रारंभ होकर वनवास और अंत में राम के साथ सीता के पुनः राज सिंहासन पर आसीन होने की कथा का वर्णन है इसका आधार राम का उत्तम चरित्र है.
मालती माधव - 10 अंको में विभाजित इस नाटक में एक छात्र माधव का उज्जैन के राजा के दरबार के मंत्री की कन्या मालती से प्रेम का वर्णन है इसमे युवावस्था के उन्मादक प्रेम का चित्रण है तथा नायिका को कई बार म्रत्यु से बचने का वर्णन है .
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