Breaking

Sunday, March 18, 2018

बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र (child development and padagogy)



बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र
(child development and pedagogy)

बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र विद्यालय स्तरीय शिक्षण व्यवस्था में कार्यरत शिक्षकों हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि बालक के विकास एवं उसके अनुसार बालक की मनोस्थिति की अवधारणा की जानकारी शिक्षक को उसके शिक्षण को प्रभावी बनाने में मदद करती है | इसके महत्व को समझते हुए केंद्र शासन एवं राज्य सरकारों  द्वारा कक्षा 1 से 8 तक के विद्यालय स्तरीय शिक्षकों के चयन हेतु होने वाली चयन परीक्षा में इसे अनिवार्य कर दिया गया है  |

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित की जाने वाली प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा वर्ग -2 एवं वर्ग -3 भी इस बिषय के लिए 30 अंक निर्धारित हैं जो कि इस पद हेतु चयन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं |

बाल विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम ( सीखना ) से सम्बन्ध :-
          बाल विकास से तात्पर्य केवल बालक का बड़ा होना नहीं हैं बल्कि यह एक बहुमुखी क्रिया है जिसमें मात्र शरीर के अंगों का विकास ही नहीं वरन इसमें सामाजिक, सांवेगिक, अवस्थाओ में होने वाले परिवर्तनों को भी शामिल किया जाता हैं इसी के अंतर्गत शक्तियों और क्षमताओं के विकास को भी गिना जाता है | इसके बारे में बिभिन्न शिक्षाशास्त्रियों के विचार निम्नानुसार हैं --
ड्रेवर - विकास प्राणी में प्रगतिशील परिवर्तन हैं जो कि किसी निश्चित लक्ष्य की ओर निरंतर निर्देशित रहता है |
इंग्लिश तथा इंग्लिश – विकास प्राणी की शारीरिक अवस्था में एक लम्बे समय तक होने वाले लगातार परिवर्तन का एक क्रम है यह विशेषकर ऐसा परिवर्तन है जिसके कारण जन्म से लेकर परिपक्वता और मृत्यु तक प्राणी में स्थायी परिवर्तन होते हैं |
गैसल – विकास केवल एक प्रत्यक्ष या घटना ही नहीं है वल्कि विकास का निरीक्षण, मूल्याँकन एवं मापन भी किया जा सकता है | विकास का मापन शारीरिक, मानसिक, एवं व्यवहारिक तीनों तरह से किया जा सकता है

बाल विकास की अवधारणायें :-

(1) हरलौक के अनुसार  –
·     गर्भावस्था                             -                  9 माह या २८० दिन
·     प्रारंभिक शैशवावस्था           -                  जन्म से 15 दिन
·     उत्तर शैशवावस्था                 -                  15 से  2 वर्ष
·     बाल्यावस्था                          -                  2 बर्ष से 11 वर्ष
·     पूर्व किशोरावस्था                 -                  11 से 13 वर्ष
·     प्रारंभिक किशोरावस्था        -                  13 से 17 वर्ष
·     उत्तर किशोरावस्था              -                  17 से 21 वर्ष

(2) स्किनर के अनुसार 
विकास एक सतत एवं क्रमिक प्रक्रिया है |



हमसे आप विभिन्न विधियों से जुड़ सकते है ------


fb page :- CAREER MITRA    
Youtube  channel – PRATIYOGITA SUTRA   
FOLLOW the Blog – Pratiyogita sutra                      

No comments:

Post a Comment