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Thursday, March 22, 2018

संधि




संधि:- (सम् + धि) शब्द का अर्थ है 'मेल'। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है। जैसे - सम् + तोष = संतोष ; देव + इंद्र = देवेंद्र ; भानु + उदय = भानूदय।
संधि के भेद
संधि तीन प्रकार की होती हैं -
  1. स्वर संधि
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

स्वर संधि

दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं। जैसे - विद्या + आलय = विद्यालय।
स्वर-संधि पाँच प्रकार की होती हैं -
  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. वृद्धि संधि
  4. यण संधि
  5. अयादि संधि

(1) दीर्घ संधि

सूत्र-अक: सवर्णे दीर्घ: अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका सवर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ हो जाते हैं। जैसे -
(क) अ/आ + अ/आ = आ
अ + अ = आ -->      धर्म + अर्थ = धर्मार्थ /
 अ + आ = आ -->    हिम + आलय = हिमालय /
 अ + आ =आ-->     पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
आ + अ = आ -->    विद्या + अर्थी = विद्यार्थी / 
आ + आ = आ -->   विद्या + आलय = विद्यालय
(ख) इ और ई की संधि
इ + इ = ई -->      रवि + इंद्र = रवींद्र ;             मुनि + इंद्र = मुनींद्र
इ + ई = ई -->      गिरि + ईश = गिरीश ;        मुनि + ईश = मुनीश
ई + इ = ई-         मही + इंद्र = महींद्र ;            नारी + इंदु = नारींदु
ई + ई = ई-         नदी + ईश = नदीश ;           मही + ईश = महीश .
(ग) उ और ऊ की संधि
उ + उ = ऊ-          भानु + उदय = भानूदय ;         विधु + उदय = विधूदय
उ + ऊ = ऊ-          लघु + ऊर्मि = लघूर्मि ;           सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
ऊ + उ = ऊ-          वधू + उत्सव =  वधूत्सव ;       वधू + उल्लेख = वधूल्लेख
ऊ + ऊ = ऊ-          भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व ;              वधू + ऊर्जा = वधूर्जा

(2) गुण संधि

इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए ; उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संधि कहते हैं। जैसे -
(क) अ + इ = ए ;                नर + इंद्र = नरेंद्र
अ + ई = ए ;                नर + ईश= नरेश
आ + इ = ए ;                महा + इंद्र = महेंद्र
आ + ई = ए                 महा + ईश = महेश

(ख) अ + उ = ओ ;            ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश ;
आ + उ = ओ             महा + उत्सव = महोत्सव
अ + ऊ = ओ             जल + ऊर्मि = जलोर्मि ;
आ + ऊ = ओ            महा + ऊर्मि = महोर्मि।
(ग) अ + ऋ = अर्             देव + ऋषि = देवर्षि
(घ) आ + ऋ = अर्             महा + ऋषि = महर्षि


(3) वृद्धि संधि

अ, आ का ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। जैसे -

(क) अ + ए = ऐ ;             एक + एक = एकैक ;
अ + ऐ = ऐ              मत + ऐक्य = मतैक्य
आ + ए = ऐ ;            सदा + एव = सदैव
आ + ऐ = ऐ ;            महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

(ख)  अ + ओ = औ           वन + औषधि = वनौषधि ;
       आ + ओ = औ          महा + औषधि = महौषधि ;
   अ + औ = औ            परम + औषध = परमौषध ; 
   आ + औ = औ           महा + औषध = महौषध

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(4) यण संधि

(क) इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।

(ख) उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है।

(ग) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।
इ + अ = य् + अ ; यदि + अपि = यद्यपि
ई + आ = य् + आ ; इति + आदि = इत्यादि।
    ई + अ = य् + अ ; नदी + अर्पण = नद्यर्पण
ई + आ = य् + आ ; देवी + आगमन = देव्यागमन
(घ)
उ + अ = व् + अ ; अनु + अय = अन्वय
उ + आ = व् + आ ; सु + आगत = स्वागत
    उ + ए = व् + ए ; अनु + एषण = अन्वेषण
ऋ + अ = र् + आ ; पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

(5)  अयादि संधि

ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं।
(क) ए + अ = अय् + अ ;              ने + अन = नयन
(ख) ऐ + अ = आय् + अ ;            गै + अक = गायक
(ग) ओ + अ = अव् + अ ;             पो + अन = पवन
(घ) औ + अ = आव् + अ ;            पौ + अक = पावक
      औ + इ = आव् + इ ;              नौ + इक = नाविक


व्यंजन संधि

व्यंजन का व्यंजन से अथवा किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
 जैसे-शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र।



(क) किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो क् को ग् च् को ज्, ट् को ड् और प् को ब् हो जाता है। जैसे -
क् + ग = ग्ग         दिक् + गज = दिग्गज। 
क् + ई = गी          वाक + ईश = वागीश
च् + अ = ज्            अच् + अंत = अजंत 
ट् + आ = डा           षट् + आनन = षडानन
प + ज + ब्ज            अप् + ज = अब्ज


(ख) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे -
क् + म = ङ्            वाक + मय = वाङ्मय 
च् + न = ञ्            अच् + नाश = अञ्नाश
ट् + म = ण्             षट् + मास = षण्मास 
त् + न = न्              उत् + नयन = उन्नयन
प् + म् = म्              अप् + मय = अम्मय



(ग) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है। जैसे -
त् + भ = द्भ             सत् + भावना = सद्भावना 
त् + ई = दी              जगत् + ईश = जगदीश
त् + भ = द्भ              भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
 त् + र = द्र                तत् + रूप = तद्रूप
त् + ध = द्ध               सत् + धर्म = सद्धर्म


(घ) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् हो जाता है। जैसे -
त् + च = च्च            उत् + चारण = उच्चारण 
त् + ज = ज्ज            सत् + जन = सज्जन
त् + झ = ज्झ            उत् + झटिका = उज्झटिका 
त् + ट = ट्ट             तत् + टीका = तट्टीका
त् + ड = ड्ड               उत् + डयन = उड्डयन
 त् + ल = ल्ल            उत् + लास = उल्लास


(ङ) त् का मेल यदि श् से हो तो त् को च् और श् का छ् बन जाता है। जैसे -
त् + श् = च्छ             उत् + श्वास = उच्छ्वास 
त् + श = च्छ             उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
त् + श = च्छ             सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र


(च) त् का मेल यदि ह् से हो तो त् का द् और ह् का ध् हो जाता है। जैसे -
त् + ह = द्ध                उत् + हार = उद्धार 
त् + ह = द्ध                 उत् + हरण = उद्धरण
त् + ह = द्ध                तत् + हित = तद्धित


(छ) स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। जैसे -
अ + छ = अच्छ              स्व + छंद = स्वच्छंद 
आ + छ = आच्छ            आ + छादन = आच्छादन
इ + छ = इच्छ               संधि + छेद = संधिच्छेद
 उ + छ = उच्छ              अनु + छेद = अनुच्छेद


(ज) यदि म् के बाद क् से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। जैसे -
म् + च् = ं                       किम् + चित = किंचित
 म् + क = ं                      किम् + कर = किंकर
म् + क = ं                       सम् + कल्प = संकल्प
 म् + च = ं                       सम् + चय = संचय
म् + त = ं                        सम् + तोष = संतोष 
म् + ब = ं                         सम् + बंध = संबंध
म् + प = ं                        सम् + पूर्ण = संपूर्ण


(झ) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। जैसे -
म् + म = म्म                      सम् + मति = सम्मति
 म् + म = म्म                     सम् + मान = सम्मान


(ञ) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन होने पर म् का अनुस्वार हो जाता है। जैसे -
म् + य = ं                सम् + योग = संयोग 
म् + र = ं                 सम् + रक्षण = संरक्षण
म् + व = ं                 सम् + विधान = संविधान
म् + व = ं                 सम् + वाद = संवाद
म् + श = ं                 सम् + शय = संशय 
म् + ल = ं                सम् + लग्न = संलग्न
म् + स = ं                सम् + सार = संसार


(ट) ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। जैसे -
र् + न = ण                    परि + नाम = परिणाम
र् + म = ण                    प्र + मान = प्रमाण                                        


(ठ) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष हो जाता है। जैसे -
भ् + स् = ष                   अभि + सेक = अभिषेक       
                                   नि + सिद्ध = निषिद्ध
                                    वि + सम + विषम

विसर्ग-संधि

                      विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे विसर्ग-संधि कहते हैं। 
               
                     जैसे- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

(क) विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का  ओ हो जाता है।

 जैसे -
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल ; 
अधः + गति = अधोगति ;
 मनः + बल = मनोबल

(ख) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता है।

 जैसे -
  निः + आहार = निराहार ;
  निः + आशा = निराशा 
  निः + धन = निर्धन

(ग) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। 

जैसे -

निः + चल = निश्चल ; 
निः + छल = निश्छल ; 
दुः + शासन = दुश्शासन

(घ) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है।
 जैसे -

नमः + ते = नमस्ते ; 
निः + संतान = निस्संतान ;
दुः + साहस = दुस्साहस

(ङ) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है।

 जैसे -
निः + कलंक = निष्कलंक ; 
चतुः + पाद = चतुष्पाद ; 
निः + फल = निष्फल

(च) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
 जैसे -
निः + रोग = निरोग ;
 निः + रस = नीरस
(छ) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। 
जैसे - अंतः + करण = अंतःकरण

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